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१. २० ) कमारों ने जुआ खेला और शंबुकुमार ने सुभानुकुमार की सारी सम्पत्ति जीत ली। - अब समयानुसार सुभानुकुमार का विवाह हो गया तो रुक्मिणी ने अपने भाई रूपचन्द के पास कुण्डलपुर प्रा म्न एवं शंबुकुमार को अपनी कन्या देने के लिये दूत भेजा, किन्तु रूपचन्द ने प्रस्ताव स्वीकार करने के स्थान पर दूत को बुरा भला कहा और यादव वंश के साथ कभी सम्बन्ध न करने की प्रतिज्ञा प्रकट की । रुक्मिणी यह जान कर बहुत दुग्नी हुई । प्रद्युम्न को भी बड़ा क्रोध अायो । प्रद्य म्न भेष बदल कर कुण्डलपुर गया तथा युद्ध में रूपचन्द को हरा कर उसे श्री कृष्ण के पैरों पर लाकर डाल दिया । अन्त में दोनों में मेल हो गया और रूपचन्द ने अपनी पुत्रियां दोनों कुमारों को मेंट कर दी।
____ प्रद्युम्न कुमार ने बहुत वर्षों तक सांसारिक सुखों को भोगा । एक दिन वह नेमिनाथ भगवान के समवसरण में पहुँचा। वहां केवली के मुख से द्वारका और यादवों के विनाश का भविष्य सुना तो उसे संसार एक भोगों से विरक्ति हो गई। माता-पिता के बहुत समझाने पर भी उसने न माना और जिन दीक्षा ले ली। तपश्चरण कर प्रद्य म्न ने घातिया कर्मों को नाश किया और केवल ज्ञान प्राप्त कर आयु के अन्त में सिद्ध पद को प्राप्त किया।
प्रद्युम्न चरित की कथा का आधार एवं उसके विभिन्न रूपः
जैन चरित काव्यों एवं कथाओं के मुख्यत: दो आधार है-एक महापुराण तथा दूसरा हरिवंश पुराण । आगे चल कर इन्हीं दो पुराणों की धारायें विभिन्न रूपों में प्रवाहित हुई है। प्रद्य म्न चरित की कथा जिनसेनाचार्य कृत हरिवंश पुराण से ली गई है। यद्यपि कवि ने अपनी रचना में इसका कोई उल्लेख नहीं किया है, किन्तु जो कथा प्रद्युम्न के जीवन के संबंध में हरिवश पुराण में दी हुई है । उसी से मिलता जुलता वर्णन प्रद्युम्न चरत में मिलता है। दोनों कथाओं में केवल एक ही स्थान पर उल्लेखनीय विरोध है। हरिवंश पुराण में सक्मिणी पत्र भेज कर श्रीकृष्ण को अपने वरण के लिये बुलाती है जबकि प्रद्युम्न चरित में नारद के अनुरोध पर श्रीकृष्ण विवाह के लिये जाते हैं।
गुणभद्राचार्य कृत उत्तरपुराण ( महापुराण का उत्तरार्द्ध ) में प्रद्य म्न चरित की कथा संक्षेप रूप में दी गई है, इसलिये उसमें नारद का श्रीकृष्ण