Book Title: Paumchariu me Prayukta Krudant Sankalan
Author(s): Kamalchand Sogani, Seema Dhingara
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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5. विधि कृदन्त
'हँसा जाना चाहिए', 'खेला जाना चाहिए' आदि भावों को प्रकट करने के लिए विधि कृदन्त का प्रयोग किया जाता है। अकर्मक क्रिया से बने हुए विधि कृदन्त का प्रयोग भाववाच्य में किया जाता है। जैसे- उसके द्वारा 'हँसा जाना चाहिए' और सकर्मक क्रिया से बने हुए विधि कृदन्त का प्रयोग कर्मवाच्य में किया जाता है। जैसे- 'मेरे द्वारा पानी पिया जाना चाहिए' । कर्तृवाच्य में विधि कृदन्त का प्रयोग नहीं किया जाता ।
अपभ्रंश भाषा में क्रिया में दो प्रकार के प्रत्यय जोड़कर विधि कृदन्त बनाये जाते हैं ।
1. परिवर्तनीय प्रत्यय - अव्व । 2. अपरिवर्तनीय प्रत्यय - इएव्वउं, एव्वउं, एवा ।
विधि कृदन्त क्रिया + प्रत्यय कृदन्तवाचक शब्द
के प्रत्यय
अव्व
इएव्व ं
एव्वउं
हसिअव्व / हसे अव्व' हँसा जाना चाहिए
हसिएव्वउं
हँसा जाना चाहिए
हसेव्वउं
हँसा जाना चाहिए
एवा
हस+एवा
हसेवा
हँसा जाना चाहिए
1. 'अव्व' प्रत्यय लगने पर अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है ।
परिवर्तनीय प्रत्ययों से निर्मित विधि कृदन्त जब भाववाच्य में प्रयुक्त
किया जाता है तब कर्ता में तृतीया (एकवचन अथवा बहुवचन) तथा कृदन्त में सदैव ‘नपुंसकलिंग प्रथमा एकवचन' ही रहेगा। जैसे
राजा के द्वारा हँसा जाना चाहिए
हस+अव्व
हस+इएव्व ं
हस+एव्वउं
नरिंदेण हसिअव्वु नरिंदेहिं हसिअव्वु = अपरिवर्तनीय प्रत्ययों से निर्मित विधि कृदन्त जब भाववाच्य में
राजाओं के द्वारा हँसा जाना चाहिए
प्रयुक्त किया जाता है तब कर्ता में तृतीया (एकवचन अथवा बहुवचन) होगा किन्तु कृदन्तरूप में कोई परिवर्तन नहीं होगा ।
पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त - संकलन ]
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हिन्दी अर्थ
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