Book Title: Paumchariu me Prayukta Krudant Sankalan
Author(s): Kamalchand Sogani, Seema Dhingara
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 41
________________ 18. 19. 20. पडिबोहणहिँ सयम्पहु तहिं पयट्टु । 21. 22. ते अण्णोणेण हणेवि णिव्वट्टिउ । — - वे एक दूसरे को मारने के लिए प्रवृत्त हुए । वज्जयण्णु मारेवि को सक्कइ । वज्रकर्ण को मारने के लिए कौन समर्थ है ? 34] — - 35/13/2 Jain Education International 25/13/8 प्रतिबोधित करने के लिए स्वयंप्रभ देव वहाँ से चला । मणु रंजेवि को वि ण सक्कइ । मन को खुश करने के लिए कोई भी समर्थ नहीं है 1 जइ जलणु डहेवि समत्थउ तो डहउ । यदि आग जलाने के लिए समर्थ है तो जलावे । 89/8/3 For Personal & Private Use Only 50/12/8 83/9/8 [ पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त - संकलन www.jainelibrary.org

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