Book Title: Paumchariu me Prayukta Krudant Sankalan
Author(s): Kamalchand Sogani, Seema Dhingara
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 52
________________ 97. रक्खन्तहो रक्ख+न्त+ 6/1 रक्षा करते 3/2/6 हुए के 98. रसन्तेहिं रस+न्त+ 3/2 आवाज करते 14/6/3 हुओं के द्वारा 99. रेल्लन्तउ रेल्ल+न्त+ 1/1 बहाता हुआ 14/9/7 100. लग्गन्तिउ लग्ग+न्त+ 1/1 लगती हुई 17/2/3 101. लवन्त लव+न्त+ 1/2 बोलते हुए 32/3/5 102. वच्चन्ति वच्च+न्त+ 1/1 छोड़ती हुई 7/3/9 103. वज्जन्तहो वज्ज+न्त+ 6/1 कहते हुए के 3/2/9 104. वण्णन्तउ वण्ण+न्त+ 1/1 देखता हुआ 45/11/15 105. वन्दन्तहो वन्द+न्त+ 6/1 वन्दना करते 78/15/6 हुए के 106. वरिसन्तु वरिस+न्त+ 1/1 बरसाता हुआ 8/10/घ. 107. वहन्तें वह+न्त+ 3/1 प्रहार करते हुए 20/7/घ, के द्वारा 108. वहन्तउ वह+न्त+ 1/1 वध करते हुए 31/2/7 109. वायन्ती वाय+न्त+ 1/1 बजाती हुई 14/10/8 110. वारन्तहो वार+न्त+ 6/1 मना करते हुए के 33/3/घ. 111. विचिन्तमाणु विचिन्त+माण+1/1 विचार विमर्श 16/3/2 करता हुआ 112. विद्धन्तहो विद्ध+न्त+ 6/1 बींधते हुए के 11/12/1 113. विहडन्ती विहड+न्त+ 1/1 विघटित करती 23/6/6 114. विहरन्त विहर+न्त+ 1/2 विहार करते हुए 32/1/प्रा. 115. विहुणन्ति विहुण+न्त+ 1/1 पीटती हुई 18/11/5 पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त-संकलन ] [45 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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