Book Title: Paumchariu me Prayukta Krudant Sankalan
Author(s): Kamalchand Sogani, Seema Dhingara
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 53
________________ 116. वोहन्तु वोह+न्त+ 1/1 बोधित करता हुआ1/16/8 117. संभरन्तु संभर+न्त+ 1/1 याद करते हुए 22/5/2 118. सम्माणन्तउ सम्माण+न्त+ 1/1 सम्मान करते हुए 73/14/4 119. सरन्ताइँ सर+न्त+ 1/2 स्मरण करते हुए 32/10/9 120. सहन्तु सह+न्त+ 1/1 सहन करता हुआ 22/5/3 121. सिंचन्तउ सिंच+न्त+ 1/1 सींचता हुआ 20/10/7 122. सुणन्तु सुण+न्त+ 1/1 सुनते हुए 11/3/1 123. सुमरन्तियए सुमर+न्त+ 3/1 स्मरण करती हुई 29/5/घ. के द्वारा 124. हक्कन्तइँ हक्क+न्त+ 1/2 हाँक देते हुए 4/7/10 125. हणन्ति हण+न्त+ 1/1 नष्ट करती हुई 18/11/5 126. हरन्तहो हर+न्त+ 6/1 हरते हुए का 3/2/4 127. हिण्डन्तहुं हिण्ड+न्त+ 6/2 घूमते हुओं का 33/14/7 ___46] 46] [पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त-संकलन For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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