Book Title: Paumchariu me Prayukta Krudant Sankalan
Author(s): Kamalchand Sogani, Seema Dhingara
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 66
________________ मानो तारा - मण्डल उदित हुआ । णं गयण-मग्गे चन्द-लेह उम्मिल्लिय । मानो आकाश पथ में चन्द्रलेखा प्रकाशित हुई । तं णिसुणेवि किक्किन्ध-णराहिउ रंजिओ । यह सुनकर किष्किन्धराज सुग्रीव प्रसन्न हो गया । अंगंगय वे वि सुहड विहडिय । अंग और अंगद दोनों ही वीर विघटित हो गये । णं सयवत्तु विहसिउ। मानो कमल हँसा । 16. तो एत्थन्तरे पहु आणन्दिउ । 12. 13. 14. 15. 18. - 19. - — - - 17. भरहेसर ओहट्टिउ । इसके अनन्तर राजा आनन्दित हो गया । भरतेश्वर हट गया । तं णिसुणेवि रावण उवहि जेम खुहिउ । उसको सुनकर रावण समुद्र की तरह क्षुब्ध हुआ । अम्बरे पुप्फविमाणु थम्भिउ । आकाश में पुष्पक विमान रुक गया । - 20. पुरन्दरेण हसिउ । - - इन्द्र के द्वारा हँसा गया । 21. तं णिसुणेवि सीय मणे कम्पिय । - उसको सुनकर सीता मन में काँप गयी । 22. कंचुइ पइँ काइँ चिराविउ । हे कंचुकी! तुम्हारे द्वारा देर क्यों की गई ? पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त - संकलन ] Jain Education International For Personal & Private Use Only 49/7/घ. 45/3/1 43/6/2 43/11/2 5/16/1 4/10/घ. 15/4/6 13/1/1 8/8/8 32/2/5 22/1/घ. [59 www.jainelibrary.org

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