Book Title: Paumchariu me Prayukta Krudant Sankalan
Author(s): Kamalchand Sogani, Seema Dhingara
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 77
________________ 158. परिट्ठविय 159. परिणिय परिट्ठव + य संस्थापना की गई 12/12/6 परिण + य . विवाह कर लिया 6/4/1 गया 160. परिपालिय परिपाल + य 161. परियंचिउ परियंच + अ 162. परियंचिउ परियंच + अ 163. परियरिय परियर + य 164. परिरक्खियउ परिरक्ख + य 165. परिवेढिउ परिवेढ + अ 166. परिसेसिउ परिसेस + अ 167. परिहरियउ परिहर + य 168. परिहिउ परिह + अ 169. पलोइयउ पलोअ + य 170. पवत्तिय पवत्त + य 171. पवरिसिय पवरिस + य 172. पवोल्लिउ पवोल्ल + अ 173. पव्वालिय पव्वाल + य 174. पसंसिउ पसंस + अ 175. पसारिय पसार + य 176. पहासिउ पहास + अ 177. पारम्भिउ पारम्भ + अ 178. पालिय पाल + य 179. पावियउ पाव + य पालन किये हुए 5/12/2 प्रदक्षिणा की गई 2/7/6 स्पर्श किया गया 17/17/3 घिरी हुई .6/12/4 रक्षा की गई 33/8/7 घेरा हुआ 1/8/6 छोड़ दिया गया 43/18/3 त्याग दिया गया 24/4/8 पहन लिया गया 9/4/6 देखा गया 37/3/घ. प्रवृत्ति की गई 5/10/2 वर्षा की गई 35/1/प्रा. कहा गया 14/8/7 प्लवित किया गया 32/2/1 प्रशंसा की गई 18/6/घ. फैलाये हुए 13/5/3 कहा गया 3/9/3 प्रारम्भ किया गया 9/9/6 पालन किया गया9/10/घ. पाया गया 13/5/घ. 70] [पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त-संकलन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122