Book Title: Paumchariu me Prayukta Krudant Sankalan
Author(s): Kamalchand Sogani, Seema Dhingara
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 112
________________ 43. आलिंग : आलिंगन करना 44. आव - आना 45. आवज्ज : प्राप्त करना 46. आवट्ट - चक्र की तरह घुमाना 47. आवील - पीड़ित करना 48. आसंक : आशंका करना 49. आहण : मारना 50. हिण्ड - भ्रमण करना 51. इच्छ - चाहना 52. उग्गाम - उठाना 53. उग्गाह : उद्घाटित करना 54.उग्गिल - उगलना 55. उग्घोस - घोषणा करना 56. उच्चल - चलना 57. उच्चाअ - उठाना 58. उच्चार : उच्चारण करना 59. उच्छिंद - छिन्न-भिन्न करना 60. उज्जाल : आलोकित करना 61. उज्जोव : प्रकाश करना 62. उज्झ - छोड़ना 63. उत्थर : आक्रमण करना 64. उदाल : छीनना,उखाड़ना 65. उद्धर - उठाना 66. उपेक्ख : उपेक्षा करना 67. उप्पाय - उत्पन्न करना 68. उप्पाड - उखाड़ना 69. उब्भ - उठाना 70. उम्मूल : उखाड़ना 71. उल्हाव : शांत करना 72. उवसम - शांत करना 73. उवयार : उपकार करना 74. उवेक्ख : उपेक्षा करना 75. उव्वेढ - मुक्त करना 76. ओआर - उतारना 77. ओवग्ग : आक्रमण करना 78. ओसार - दूर हटाना 79. कड्ढ : खींचना 80. कप्प : काटना 81. कप्पर : काटना 82. कम - लांघना 83. कर - करना 84. कलंक - कलंकित करना 85. कह - कहना 86. कील - क्रीड़ा करना 87. कोक्क : बुलाना 88. खंच : खींचना 89. खंड - टुकड़े करना 90. खण - खोदना पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त-संकलन] [105 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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