Book Title: Paumchariu me Prayukta Krudant Sankalan
Author(s): Kamalchand Sogani, Seema Dhingara
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 67
________________ 23. किं इन्दहो इन्दत्तणु टलिउ । 27/6/6 - क्या इन्द्र का इन्द्रत्व टल गया। 24. गइ तुट्टिय। 22/2/3 - गति टूट गयी। 25. तहिँ बालए कलुणु पकन्दियउ। 29/6/1 - वहाँ बाला के द्वारा करुण क्रन्दन किया गया। 26. महु पुण्णेहिँ तुम्ह समावडिय। - 36/12/6 - मेरे पुण्यों से तुम मिल गये। प्रथमा विभक्ति बहुवचन के वाक्य-प्रयोग - 1. भावण-भवणेहिँ संख पवज्जिय। 2/1/2 - भवनवासी देवों के भवन में शंख बज उठे। 2. भीम-भईरहि वे उव्वरिया। 5/11/3 - भीम और भगीरथ दोनों बच गये। 3. कत्थइ सुय-पन्तिउ उद्वियाउ। 13/5/4 - कहीं तोतों की पंक्तियाँ उठीं। ___4. छत्तइँ णाइँ सयवत्तइँ महिहिँ पडियइँ। 52/2/6 - छत्र कमल की तरह धरती पर पड़े हुए थे। 5. वेण्णि वि वलइँ परोप्परु भिडिय। 52/8/8 - दोनों ही सेनाएँ आपस में टकरा गईं। 6. तहो लोयण' फुटेवि उच्छलिय। 52/10/7 - उसके नेत्र फूटकर उछल पड़े। 7. तं वयणु सुणेवि सीयहे णयणइँ डोल्लिय। 54/1/घ. - यह वचन सुनकर सीता के नेत्र हिल उठे। 60] [ पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त-संकलन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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