Book Title: Paumchariu me Prayukta Krudant Sankalan
Author(s): Kamalchand Sogani, Seema Dhingara
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 58
________________ 2. आ - हमेशा विहार करते हुए राम लक्ष्मण से वनवास में विमुख होकर मानो सीता स्थित हुई। सप्तमी विभक्ति के प्रयोग - 1. किं पइसरमि वलन्ते हुआसणे। 29/4/2 - क्या (मैं) जलती हुई आग में प्रवेश करूँ ? स्त्रीलिंग के प्रयोग - 1. रावणेण सरि दिट्ठ वहन्ती। 14/10/2 - रावण के द्वारा बहती हुई नदी देखी गई। आसालिय णहे गज्जन्ति पराइय। __15/14/घ. - आशाली विद्या आकाश में गरजती हुई आ गई। 3. कन्दन्ति पइँ तिलु तिलु करवत्तेहिं कप्पइ । 41/12/9 - क्रन्दन करती हुई तुम तिल तिल करपत्रों से काटी जाओगी। अंसु फुसन्तियए वुच्चइ लीहउ कड्ढन्तियए। 18/10/घ. - आँसू पोंछते हुए और लकीर खींचते हुए उसके द्वारा कहा जाता है। 5. हा हा माए' भणन्तिहिँ सहियहिँ कलयलु किउ । 21/8/6 - हा माँ हा माँ कहती हुई सखियों के द्वारा कोलाहल किया गया। 6. वणे णिवसन्तियहे वय-वन्तिहे सुउ उप्पण्णु विराहिउ। 12/4/घ. - वन में निवास करती हुई व्रतवती के विराधित (नामक) पुत्र उत्पन्न हुआ। 7. णिय-पइहे मिलन्तिहे कुलवहुहे सीलु जि होइ पसाहणउ। 78/5/घ. - निज पति से मिलती हुई कुलवधु का प्रसाधन शील होता है। 4. पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त-संकलन] [51 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122