Book Title: Paumchariu me Prayukta Krudant Sankalan
Author(s): Kamalchand Sogani, Seema Dhingara
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 43
________________ 8. उप्पज्जन्तु उप्पज्ज+न्त+ 1/1 उत्पन्न होता हुआ 35/14/घ. 9. उम्मीलन्तहुँ उम्मील+न्त+4/2 विकसित होते हुओं 14/5/घ. के लिए 10. ओणल्लन्तउ ओणल्ल+न्त+ 2/1 अवनत होती हुई को 17/15/4 11. ओहट्टन्तउ ओहट्ट+न्त+2/1 नष्ट होती हुई को 17/3/4 12. कन्दन्तु कन्द+न्त+2/1 विलाप करते हुए को 9/10/7 13. कडयडन्तु कडयड+न्त+ 1/1 कड़-कड़ की आवाज 51/1/6 करते हुए 14. कम्पन्तु कम्प+न्त+ 1/1 काँपता हुआ 1/3/घ. 15. करकरयरन्तु करकरयर+न्त+ 1/1 करकराते हुए 51/1/7 16. कसमसन्त कसमस+न्त+ 1/2 कसमसाते हुए 35/10/घ. 17. कहकहन्ती कहकह+न्त+ 1/1 कहकहाती हुई 9/12/1 18. किलिकिलन्ति किलिकिल+न्त+ 1/1 किलकिलाते हुए 32/9/8 19. खलखलन्ति खलखल+न्त+ 1/1 खल-खल करती हुई 31/3/6 20. खलन्त खल+न्त+1/1 स्खलित होते हुए 17/13/3 21. खेलन्तु खेल+न्त+1/1 खेलता हुआ 9/4/1 22. गज्जन्ति गज्ज+न्त+ 1/1 गरजती हुई 15/14/घ. 23. गलन्तु गल+न्त+2/1 गलती हुई को 24/3/8 24. गुप्पन्ती गुप्प+न्त+ 1/1 व्याकुल होती हुई 23/6/7 25. गुलुगुलन्त गुलुगुल+न्त+1/1 गरजता हुआ 26/13/1 26. घवघवन्ति घवघव+न्त+ 1/1 घव-घव करती हुई 31/3/5 27. घुम्मन्तु घुम्म+न्त+ 1/1 घूमता हुआ 35/3/घ. 28. घुलन्तई घुल+न्त+ 2/2 लड़खड़ाते हुओं को 4/8/9 29. चडन्तहो चड+न्त+ 6/1 चढ़ते हुए के 3/2/8 30. छिज्जमाणु छिज्ज+माण+ 1/1 नष्ट होता हुआ 69/13/4 31. जगडन्तउ जगड+न्त+ 1/1 झगड़ा करते हुए 10/8/4 II liinili 36] [पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त-संकलन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122