Book Title: Paumchariu me Prayukta Krudant Sankalan
Author(s): Kamalchand Sogani, Seema Dhingara
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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2. संबंधक कृदन्त जब कर्ता एक क्रिया समाप्त करके दूसरा कार्य करता है तो पहले किये गये कार्य के लिए 'संबंधक कृदन्त' का प्रयोग किया जाता है। जैसेवह "हँसकर' सोता है। संबंधक कृदन्तवाचक शब्द अव्यय होते हैं इसलिए इनका वाक्य-प्रयोग में रूप-परिवर्तन नहीं होता है। 'लिंग, विभक्ति और वचन के अनुसार जिनके रूपों में घटती-बढ़ती न हो, वह अव्यय है।'
संबंधक कृदन्त अकर्मक क्रियाओं और सकर्मक क्रियाओं में प्रत्यय जोड़कर बनाये जाते हैं। जब प्रत्यय सकर्मक क्रियाओं में जोड़े जाते हैं तब उनके साथ कर्म का प्रयोग अनिवार्य होता है। जैसे - वह जल 'पीकर' जाता है। इस वाक्य में 'पीकर' सकर्मक क्रिया से बना हुआ 'संबंधक कृदन्त' है जिसके लिए 'जल' कर्म के रूप में प्रयुक्त हुआ है। आगे अकर्मक क्रियाओं से बने हुए संबंधक कृदन्त एवं उनके वाक्य-प्रयोग तथा सकर्मक क्रियाओं से बने हुए संबंधक कृदन्त एवं उनके वाक्य-प्रयोगों को दर्शाया जा रहा है
__ (क) अकर्मक क्रियाओं से बने हुए संबंधक कृदन्त क्र. कृदन्तयुक्त क्रिया + कृदन्त- हिन्दी अर्थ सन्दर्भ सं. क्रिया प्रत्यय 1. अच्छेवि अच्छ + एवि रहकर 40/16/1 2. आऊरेवि आऊर + एवि उतरकर 39/3/6 3. उच्छलेवि उच्छल + एवि उछलकर 17/6/घ. 4. उडेवि उट्ठ + एवि उठकर 8/9/7
उड्डवि उड्ड + अवि उड़कर 36/1/5 6. उत्थरेवि उत्थर + एवि उछलकर 9/9/घ. 7. उप्पज्जवि उप्पज्ज + अवि उत्पन्न होकर 6/3/6 8. ओयरेवि ओयर + एवि उतरकर 1/8/1 9. ओरालेवि ओराल + एवि गरजकर 38/9/5
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[पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त-संकलन
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