Book Title: Paumchariu me Prayukta Krudant Sankalan
Author(s): Kamalchand Sogani, Seema Dhingara
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 21
________________ 11. वज्जयणेण हसेवि पुच्छिउ । 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 14] — - • राम गरुड़ बनकर (होकर) स्थित हो गये । सो वि मरेवि कहिमि सुरत्तणु पत्तु । वह भी मरकर कहीं देवत्व को प्राप्त हुआ । एत्थ अच्छेवि अम्हे किं करेसहुँ ? यहाँ रहकर हम क्या करेंगे ? वज्रकर्ण के द्वारा हँसकर पूछा गया। राहउ गरुडु होवि थिउ । - - णं अडविहे पाण उड्डवि गय । मानो अटवी के प्राण उड़कर गये हों । सीहु जेम ओरालेवि सो धावइ । - सिंह के जैसे गरजकर वह भागता है । - जण्हुव-जोत्तेहिं घुलेप्पिणु सो पडिउ । - घुटनों के जोड़ों से घूमकर वह गिर पड़ा। जा पूयण - जक्खें तुसेवि दिण्णी । - — - 25/3/1 Jain Education International 32/6/4 22/6/5 For Personal & Private Use Only 40/16/1 जो पूतन यक्ष के द्वारा संतुष्ट होकर गिर पड़ी। तहिँ रवण्णए णयरे णिवसेप्पिणु वल - नारायण गय 26/4/10 उस सुन्दर नगर में निवास करके लंकासुंदरी से विवाह किया। पुणु कलहेवि लंकासुन्दरि परिणिय । 55/12/3 36/1/5 38/9/5 38/17/5 — - फिर युद्ध करके लंकासुन्दरी से विवाह किया । कमलायर-तीरन्तरे थक्केवि रहुवइ पभणइ | कमल महासरोवर के किनारे पर बैठकर राम कहते हैं । अवरोप्परु झुज्झेवि मरणु पत्त । - - एक-दूसरे से लड़कर मरण को प्राप्त हुए । 32/8/4 77/15/2 84/5/2 [ पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त - संकलन www.jainelibrary.org

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