Book Title: Paumchariu me Prayukta Krudant Sankalan
Author(s): Kamalchand Sogani, Seema Dhingara
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 30
________________ 190. मुसुमूरिउ मुसुमूर + इउ कुचलकर 191. मेलवेवि मेलव + एवि इकट्ठी कर 192. मेल्ले प्पिणु मेल्ल + एप्पिणु छोड़कर 193. रएप्पिणु रअ + एप्पिणु रचकर 194. रंजेवि रंज + एवि रंजित करके 195. रडेवि रड + एवि टर्र टर्र करके 196. रसेवि रस + एवि चिल्लाकर 197. लंघेप्पिणु लंघ + एप्पिणु लांघकर 198. लहवि लह + अवि प्राप्त करके 199. लिहेप्पिणु लिह + एप्पिणु लिखकर 200. लेवि ले + एवि लेकर 201. वंचेवि वंच + एवि बचाकर 202. वण्णेप्पिणु वण्ण + एप्पिणु वर्णन करके 203. वन्देवि वन्द + एवि वन्दना करके 204. वरिसेवि वरिस + एवि वर्षा करके 205. वहेवि वह + एवि वध करके 206. वाएवि वाअ + एवि बजाकर 207. वावरेवि वावर + एवि युद्ध करके 208. वाहेवि वाह + एवि हांककर 209. विच्छोडेवि विच्छोड + एवि अलग करके 210. विण्णवेवि विण्णव + एवि प्रणाम करके 211. विणिवाएवि विणिवाअ + एवि मारकर 212. वित्थरेवि वित्थर + एवि फैलाकर 213. विद्दारेवि विद्दार + एवि विदीर्ण करके पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त-संकलन ] 25/15/3 5/6/2 17/6/9 2/5/7 42/2/2 28/3/2 24/6/घ. 2/5/7 87/1/2 30/2/2 1/10/3 13/12/9 49/9/9 2/17/1 35/1/2 17/8/2 30/4/2 12/9/8 12/1/घ. 55/3/2 5/16/2 42/4/5 59/10/1 40/16/घ. [23 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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