Book Title: Paumchariu me Prayukta Krudant Sankalan
Author(s): Kamalchand Sogani, Seema Dhingara
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 29
________________ 166. पेसेवि 167. पोमाएवि 168. फाडेण्पिणु 169. फेडेवि 170. बंधेवि 171. बुज्झेवि 172. भंजेवि 173. भज्जेवि 174. भणेवि 175. भमेवि 176. भरेप्पिणु 177. भावेवि पेस + एवि पोमाअ + एवि फाड + एप्पिणु फेड + एवि बंध + एवि Jain Education International बुज्झ + एवि भंज + एवि भज्ज + एवि भण + एवि भम + एवि भर + एप्पिणु भाव + एवि भिन्द + एवि भुंज + एवि भूस + एवि मण + एवि 178. भिन्देवि 179. भुंजेवि 180. भूसेवि 181. मणेवि 182. मण्णेवि मण्ण + एवि 183. मण्डेवि मण्ड + एवि 184. मलेवि मल + एवि 185. माणेवि माण + एवि 186. मारेवि मार + एवि 187. मुएवि मुअ + एवि 188. मुणेवि मुण + एवि 189. मुण्डेवि मुण्ड + एवि 22] भेजकर प्रशंसा करके फाड़कर हटाकर बाँधक समझकर नाश करके भग्न करके कहकर प्रदक्षिणा देकर भरकर ध्यान देकर भेदकर भोजन करके विभूषित करके समझकर समझकर रचकर मर्दन करके 20/7/5 13/9/1 9/2/घ. 35/5/1 24/5/घ. 85/6/5 12/5/12 6/15/5 2/12/8 12/1/घ. 2/5/8 5/16/6 13/4/1 25/12/2 25 / 15 / घ. 2/7/8 25/12/घ. 4/5/9 12/10/घ. 84/13/घ. 61/2/घ. 6/15/घ. 3/12/1 30/1/3 अनुभव करके मारकर छोड़कर समझकर मूंडकर [ पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त-संकलन For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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