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11. वज्जयणेण हसेवि पुच्छिउ ।
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• राम गरुड़ बनकर (होकर) स्थित हो गये ।
सो वि मरेवि कहिमि सुरत्तणु पत्तु ।
वह भी मरकर कहीं देवत्व को प्राप्त हुआ ।
एत्थ अच्छेवि अम्हे किं करेसहुँ ?
यहाँ रहकर हम क्या करेंगे ?
वज्रकर्ण के द्वारा हँसकर पूछा गया।
राहउ गरुडु होवि थिउ ।
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णं अडविहे पाण उड्डवि गय ।
मानो अटवी के प्राण उड़कर गये हों ।
सीहु जेम ओरालेवि सो धावइ ।
- सिंह के जैसे गरजकर वह भागता है ।
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जण्हुव-जोत्तेहिं घुलेप्पिणु सो पडिउ ।
- घुटनों के जोड़ों से घूमकर वह गिर पड़ा।
जा पूयण - जक्खें तुसेवि दिण्णी ।
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40/16/1
जो पूतन यक्ष के द्वारा संतुष्ट होकर गिर पड़ी। तहिँ रवण्णए णयरे णिवसेप्पिणु वल - नारायण गय
26/4/10
उस सुन्दर नगर में निवास करके लंकासुंदरी से विवाह किया।
पुणु कलहेवि लंकासुन्दरि परिणिय ।
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- फिर युद्ध करके लंकासुन्दरी से विवाह किया ।
कमलायर-तीरन्तरे थक्केवि रहुवइ पभणइ |
कमल महासरोवर के किनारे पर बैठकर राम कहते हैं । अवरोप्परु झुज्झेवि मरणु पत्त ।
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- एक-दूसरे से लड़कर मरण को प्राप्त हुए ।
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[ पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त - संकलन
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