Book Title: Paumchariu me Prayukta Krudant Sankalan
Author(s): Kamalchand Sogani, Seema Dhingara
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 20
________________ अकर्मक क्रियाओं से बने हुए संबंधक कृदन्त के वाक्य-प्रयोग 1. सहसक्खें उद्वेवि चक्कु मुक्कु। 8/9/7 - सहस्राक्ष के द्वारा उठकर चक्र छोड़ा गया। 2. सरियउ महीहरहो णीसरेवि रयणायरे सलिलु ढोयन्ति। 6/3/3 - नदियाँ पहाड़ों से निकलकर समुद्र में पानी ले जाती हैं। 3. गज्जेवि गुलगुलेवि णं गयवरहो महग्गउ भिडिउ। 10/10/घ. - गरजकर और गुलगुल की आवाज करके मानो महागज महागज से भिड़ गया हो। 4. महा-सरहो मज्झे उप्पज्जवि णलिणिउ वियसन्ति। 6/3/6 - महासरोवर के मध्य में उत्पन्न होकर कमलिनियाँ खिलती हैं। 5. णं काम-वेणि गलेवि पइट्ठी। 14/7/7 - मानो काम वेणी गलकर प्रविष्ट हुई। 6. वेण्णि वि विहि चलणेहिं णिवडेप्पिणु जिणु पासे थिय। 2/13/8 - दोनों ही दोनों चरणों में गिरकर जिनवर के पास बैठ गये। 7. हिं उववणे थोवन्तरु थाएवि पयागे णिक्खवणु किउ। 2/11/3 - उस उपवन में थोड़ी देर स्थिर होकर प्रयाग में संन्यास ग्रहण किया। ___8. पुणु एक्कासणे वइसरेवि थिउ। 6/1/5 - फिर एक आसन पर बैठकर स्थित हुए। 9. जं जाणहु तं मिलेवि महु करहु। 4/5/2 - जैसा समझो वैसा मिलकर मेरे लिए कर दो। 10. तेण विहसेविणु एम वुत्तु। 1/16/1 ___- उसके द्वारा हँसकर इस प्रकार कहा गया। पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त-संकलन] [13 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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