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खुशी की खोज
जो न मिला मुझे, उसके दुःख में, जो मिला, उसे क्यों भूल जाउं; दुःख के चुल्लु-भर पानी में, अपनी खुशी की दुनिया, क्यों डुबाउं. कहीं न कहीं, कुछ तो, कम रहेगा ही, कुछ न कुछ, पहोंच से दूर, रहेगा ही; क्यों, हर घडी उसी की शिकायत करती जाउ, क्यों, जीवन में, स्वयं कांटे बोती जाउ जो चाहा, यदि सब मिल जाता, तो फिर चाहने को, क्या रह जाता;
और चाहे बगर, जीवन भी क्या रह जाता, ईश-कृपा से मिला, उसी में मगन हो जाउ अपनी पीडा को, इतना क्यों सहलाउं, कि अणु जैसी वह, विराट शिला बन जायें; क्यों अपनी पीडा में, इतनी डूब जाउं, कि, किसी दूसरे के 'आंसु' देख ही न पाउं.
નન્દિની મહેતા
Meaning
सबछाया -
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CHHAYA.
१८८:416शाणा
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