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एक रेलवे का कर्मचारी संयोग से रेफ्रिजरेटर कार में फंस गया। अब न तो वह उसमें से भाग सकता था, और न ही किसी को आवाज लगाकर बुला सकता था। आखिरकार थककर उसने स्वयं को नियति के हाथों में छोड़ दिया। कार की दीवार पर उसकी मृत्यु का विवरण इन शब्दों में लिखा
हुआ था 'मैं ठंडा होता जा रहा हूं, और ठंडा, अब और भी ठंडा। सिवाय प्रतीक्षा करने के और कुछ करने को नहीं है। हो सकता है ये मेरे अंतिम शब्द हो।' और वे अंतिम ही हुए। जब कार को खोला गया, तो खोलने वाले लोग उस कर्मचारी को मरा हुआ देखकर चकित रह गए। उसकी मृत्यु का कोई शारीरिक कारण तो था नहीं। कार का तापमान इतना कम भी न था, छप्पन डिग्री ही था । केवल मन में ही उसे ऐसा लग रहा था कि वह ठंडा होता जा रहा है। और वहां पर पर्याप्त मात्रा में ताजी हवा भी थी, उसका दम नहीं घुटा था।
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वह अपने ही मन की गलत सोच के कारण मरा। वह अपने ही भय के कारण मरा। वह अपने ही मन के कारण मरा। वह आत्महत्या थी ।
तो ध्यान रहे, जहां कहीं भी तुम ध्यान देते हो, वही तुम्हारी वास्तविकता वही तुम्हारी सच्चाई बन जाती है और एक बार जब वह वास्तविकता बन जाती है, तब वह तुम्हें भी और तुम्हारे ध्यान को भी अपनी ओर खींचने में समर्थ हो जाती है। तब तुम और अधिक ध्यान उसकी ओर देने लगते हो तब एक दिन वही वास्तविकता बन जाती है और धीरे धीरे वह झूठ जो कि मन के ही द्वारा गढ़ा गया है, एकमात्र वास्तविकता बन जाता है, और सत्य पूरी तरह भूल जाता है।
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सत्य को खोजना होता है। और सत्य तक पहुंचने का एकमात्र रास्ता यही है कि पहले सारे विषयों को गिर जाने दो, केवल एक विषय ही रह जाए। दूसरी बात, जिससे भी तुम्हारी चेतना इधर-उधर भागती हो, उन सभी परिस्थितियों को गिरा दो चेतना के सतत प्रवाह को एक ही विषय पर केंद्रित होने दो। और फिर तीसरी घटना अपने से घटती है। अगर यह दोनों बातें पूरी हो जाती हैं तो समाधि अपने से ही फलित हो जाती है। फिर अचानक एक दिन बाह्य और अंतस दोनों मिट जाते हैं, अतिथि और आतिथेय दोनों बिदा हो जाते हैं, फिर मौन का और शांति का साम्राज्य चारों ओर छा जाता है। उस शांति में ही जीवन लक्ष्य की प्राप्ति होती है।
पतंजलि कहते हैं:
"धारणा, ध्यान और समाधि- इन तीनों का एकत्रीकरण संयम को निर्मित करता है।
पतंजलि ने संयम की बहुत ही सुंदर परिभाषा की है। साधारणतया संयम का मतलब अनुशासन, चरित्र पर नियंत्रण रखना समझा जाता है। लेकिन ऐसा नहीं है संयम तो जीवन में उस संतुलन का नाम है, जब दृश्य और द्रष्टा दोनों मिट जाते हैं, तब उपलब्ध होता है। संयम तो शांति की वह अवस्था है,