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जब मन चला जाता है और ध्यान ही बचता है, तब न तो कोई जानने वाला होता है और न ही जाना जाने वाला ही बचता है। दोनों ही चले जाते हैं, तब समाधि फलित होती है।
और जब तक उसको नहीं जान लो - उस 'जानने को, जो जानने वाला और जाना जाने वाले से परे होता है - तुम जीवन को जानने से चूक गए। हो सकता है तितलियों के पीछे भाग रहे हो, स्वप्नों में थोड़ा-बहुत सुख मिल भी रहा हो, लेकिन फिर भी तुम उस परम आनंद को चूक रहे हो। एक शहद से भरा बर्तन किसी के कमरे में लुढ़क गया, शहद की मीठी-मीठी गंध से बहुत सारी मक्खियां खिंची चली आयीं। उन्होंने खूब शहद खाया। जब शहद खाते खाते उनके पैर शहद में चिपक गए, तो फिर उनके लिए उड़ना भी मुश्किल हो गया, और उड़ न पाने के कारण उनका दम घुटने लगा। जब वे ने ही वाली थीं, तो उनमें से एक मक्खी आह भरते हुए बोली, ' आह, हम कितने मूढ़ हैं। थोड़े से सुख के लिए हमने स्वयं को नष्ट कर लिया।'
ध्यान रहे, ऐसा तुम्हारे साथ भी हो सकता है। तुम्हारी भी पृथ्वी से इतनी अधिक पकड़ हो सकती है कि तुम अपने पंखों का उपयोग ही न कर सको छोटे मोटे सुखों में डूबकर उस परम आनंद के विषय में सब कुछ भूल जाते हो, जो कि सदा से तुम्हारा है। बस उसके स्मरण भर की देर है । ध्यान रहे, समुद्र के किनारे पड़े हुए कंकड़, पत्थर और सीपियों को इकट्ठा करते करते ही तुम अपनी पूरी - जिंदगी को गंवा सकते हो, अपने अस्तित्व के आनंद और अमूल्य खजाने को चूक सकते हो, और ऐसा ही हो रहा है। केवल कभी -कभी ही कोई व्यक्ति इस बात के प्रति जागरूक हो पाता है कि जीवन की इस साधारण कैद की पकड़ में नहीं आता है, जीवन का खजाना तो स्वयं के भीतर ही छिपा है।
मैं ऐसा नहीं कह रहा कि आनंद और उत्सव मत मनाओ। सूरज की रोशनी सुंदर है, फूल और तितलियां भी सुंदर हैं, लेकिन उन में ही मत खो जाना। उनसे आनंदित होना, उसमें कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन हमेशा ध्यान रहे, परम सौंदर्य तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है। कभी-कभी सूरज की धूप में विश्राम कर लेना, लेकिन इसे ही जीवन की शैली मत बना लेना । कभी -कभी समुद्र के तट पर विश्राम भी कर लेना और कंकड़-पत्थरों से खेल भी लेना। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। कभी - कभी छुट्टी या पिकनिक मनाने की तरह यह ठीक है, लेकिन इसे ही अपनी जीवन शैली मत बना लेना। नहीं तो तुम बुरी तरह से चूक जाओगे।
और ध्यान रहे, जहां कहीं भी तुम अपने ध्यान को केंद्रित करके जीने लगते हो, वही तुम्हारे जीवन की वास्तविकता बन जाती है, वही तुम्हारे जीवन का यथार्थ बन जाता है। अगर तुम अपना ध्यान कंकड़-पत्थरों पर लगा देते हो, तो वे ही तुम्हारे लिए हीरे बन जाते हैं क्योंकि जहां कहीं भी तुम्हारा ध्यान केंद्रित हो जाता है, वहीं तुम्हारे लिए खजाना हो जाता है।
मैंने
सुना
है, एक बार ऐसा
हुआ।