Book Title: Painnay suttai Part 1
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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१७. गच्छायारपइण्णयं ३०१६. तम्मूलं संसारं जणेइ अन्जा वि गोयमा ! नूणं ।
तम्हा धम्मुवएस मोत्तुं अन्नं न भासिज्जा ॥ १३३॥ ३०१७. मासे मासे उ जा अजा एगसित्थेण पारए ।
कलहइ गिहत्थभासाहिं, सव्वं तीए निरत्ययं ॥१३४ ॥
[गा. १३५-३७. गंथसमत्ती ३०१८. महानिसीह-कप्पाओ ववहाराओ तहेव य ।
साहु-साहुणिअट्ठाए गच्छायारं समुद्धियं ॥१३५ ॥ ३०१९. पढंतु साहुणो एयं असज्झायं विवजिउं ।
उत्तमं सुयनिस्संदं गच्छायारं सुउत्तमं ॥१३६ ॥ ३०२०. गच्छायारं सुणित्ताणं पढित्ता भिक्खु भिक्खुणी ।
कुणंतु जं जहा भणियं इच्छंता हियमप्पणो ॥१३७॥
॥ गच्छायारं सम्मत्तं ॥१७॥
१. जाणंतु जे.॥ २. इति गच्छायारपइन्नं जे० । गच्छायारपइण्णयं सम्मत्तं सा०॥ .
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