Book Title: Painnay suttai Part 1
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 572
________________ ४१५ २०. तित्थोगालीपइन्नयं [गा. ६३-६२०. तइय-चउत्थअरयाणं वित्थरओ परूषणं] [गा. ६३-९०. तइयसुसमदूसमाभावाणं परूवणे कुलगरुप्पत्तिआइवण्णणं] ३६०४. हेमवएरन्नवया दस खेत्त हवंति भरहखेत्तसमा। सूसमदूसमकाले आसी तइए य अरगम्मि ॥ ६३॥ ३६०५. जो अणुभावो सुसमाए होइ सो सुसमदूसमाए वि । दो दो य पलिय-गाउयपरिहीणं आउ-उच्चत्तं ॥ ६४॥ ३६०६. पलिओवमलेहद्धं परमाउं होइ तेसि मणुयाणं । तइयाए उक्कस्सं, अवसाणे पुव्वकोडीओ ॥६५॥ ३६०७. ओसहि-बल-विरिय-परक्कमा य संघयण-पज्जवगुणा य । अणुसमयं हायंती उवभोगसुहाणि य नराणं ॥६६॥ ३६०८. मूल-फल-कंद-निम्मलनाणाविहइट्टगंध-रसभोगी। ववगयरोगायंका सुरूव सुरदुंदुभि(भी)थणिया ॥६७॥ ३६०९. सच्छंदवणवियारी ते पुरिसा, ता य होति महिलाओ। निच्चोउगपुप्फ-फला ते वि य रुक्खा गुणसहीणा ॥ ६८॥ ३६१०. नाणामणि-रयणमया तेसिं सयणाऽऽसणाई रुक्खेसु । नर-नारिंगणो मुइओ सुहवसही तत्थ समुवेइ ॥ ६९॥ ३६११. ओसप्पिणीइमीए तइयाए समाए पच्छिमे भाए। पलिओवमट्ठभागे सेसम्मि उ कुलगरुप्पत्ती ॥ ७० ॥ ३६१२. अंडूभरहमज्झिल्लतिभागे गंग-सिंधुमज्झम्मि । एत्थ बहुमज्झदेसे उप्पन्ना कुलगरा सत्त ॥ ७१॥ ३६१३. पुल्वभव-जम्म-नाम पमाण-संघयणमेव संठाणं । वण्णित्थि-आउ-भागा भवणोवाओ य नीति य ॥७२॥ ३६१४. अवरविदेहे दो वणियवयंसा माइ-उज्जुए चेव। ___ कालगया इह भरहे हत्थी मणुओ य आयाया ॥७३॥ 1.भत्र पूर्वाः सर्वास्वपि प्रतीषूपलब्धे पाठे छन्दोभङ्गोऽस्ति ॥ ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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