Book Title: Painnay suttai Part 1
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 649
________________ ४९२ पइण्णयसुत्तेसु ४४६२. मंताण य परिहाणी पसिणावचल्लसाणजोयाणं (१)। कलहऽब्भक्खाणाणं वुड्डी एवं जिणा बेंति ॥ ९२१ ॥ ४४६३. कलहकरा डमरकरा असमाहिकरा अनेव्वुइकरा य । होहिंति एत्थ समणा नवसु वि खेत्तेसु एमेव ॥ ९२२ ॥ ५ ४४६४. दूसमकाले होही एवं एवं जिणा परिकहेंति । एंगंतदूसमाए पावतरागं अतो एं(? ए)ति ॥ ९२३॥ [गा. ९२४-७५. छगुस्स अड्दूसमासमाए भावा] ४४६५. एव परिहायमाणे लोगे चंदो व्व कालपक्खम्मि । जे धम्मिया मणुस्सा सुजीवियं जीवियं तेसिं ॥ ९२४ ॥ १० ४४६६. दुस्समसुस्समकालो महाविदेहेण आसि परितुल्लो। सो उ चउत्थो कालो वीरे परिनिव्वुते छिन्नो ॥ ९२५॥ ४४६७. तिहिं वासेहिं गतेहिं गएहिं मासेहि अद्धनवमेहिं । एवं परिहार्यते दूसमकालो इमो जातो ॥ ९२६ ॥ ४४६८. एयम्मि अइक्कंते वाससहस्सेहि एक्कवीसाए । १५ फिट्टिहिति लोगधम्मो अग्गीमग्गो जिणऽक्खातो ॥ ९२७ ॥ ४४६९. होही हाहाभूतो [य] दुक्खभूतो य पावभूतो य । कालो अमाइपुत्तो गोधम्मसमो जणो पच्छा ॥ ९२८ ॥ ४४७०. खर-फरुसधूलिपउरा अणिट्ठफासा समंततो वाया । वाहिति भयकरा वि अ दुव्विसहा सव्वजीवाणं ॥ ९२९॥ २० ४४७१. धूमायंति दिसाओ रओ-सिला-पंक-रेणुबहुलाओ। भीमा भयजणणीओ समंततो अंतकालम्मि ॥ ९३०॥ ४४७२. अह दूसमाए तीसे वीतिकंताए चरिमसमयम्मि । वासीहि सव्वरतिं सुमहंत निरंतरं वासं ॥ ९३१॥ १. परिणा' ला०॥ २. 'अतिदूसमाए'इत्यर्थः॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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