Book Title: Painnay suttai Part 1
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

Previous | Next

Page 647
________________ ४९० पइण्णयसुत्तेसु ४४३८. होहिंति साहुणो वि य सपक्खनिरवेक्ख निद्दया धणियं । समणगुणमुक्कजोगी केई संसारछेत्तारो॥ ८९७॥ ४४३९. हितिहिति गुरुकुलवासो, मंदा य मती य समणधम्मम्मि। एयं तं संपतं 'बहुमुंडे अप्पसमणे य' ॥८९८॥ ५ ४४४०. रह गावि सिला सत्थो गोयममादीण वीरकहिया उ। कैप्पडुम सीहा वि य तित्थोगालीए दिटुंता ॥ ८९९॥ ४४४१. लुद्धा य साहुवग्गा संपति उप्फालसूयगा बहुगा। अलियवयणं च परं धम्मो य जितो अहम्मेण ॥९००॥ ४४४२. लुद्धा य पुहइपाला पयतीउप्फलसूयगा बहुला । अलियवयणं च पउरं धम्मो य जितो अहम्मेण ॥९०१॥ ४४४३. गामा मसाणभूता, नगराणि य पेयलोयसरिसाणि । दाससमा य कुडुंबी, जमदंडसमा य रायाणो ॥९०२॥ ४४४४. राया भिच्चे, भिच्चा य जणवए, जणवए य रायाणो। खायंति एक्कमेक्कं मच्छा इव दुब्बले बलिया ॥९०३॥ १५ ४४४५. जे अंता ते मज्झा, मज्झा य कमेण होति पंच(? त)त्ता। अपडागा इव नावा डोलंति समंततो देसा ॥९०४॥ ४४४६. पगलितगो-महिसाणं उत्तत्थाणं पलायमाणाणं । अजहन्निया पवित्ती उच्चक्खाणं जणवयाणं (?) ॥९०५॥ ४४४७. संपत्ता य जणवदा पणट्ठसोभस्सवा(? या) णिरभिरामा । २० हियदार-सावएज्जा चोराउलदुग्गमा देसा ॥९०६॥ ४४४८. चोरे हणंति देसे, रायाकरपीडियाइं रट्ठाई। अइरोद्दऽज्झवसाणा भिन्चा य हणंति रायाणो ॥ ९०७॥ ४४४९. धण-धण्णे अवि(धि)तण्हो भिक्खा-बलि-दाणधम्मपरिहीणो। पावो मोहमतीओ गुरुजणविपरम्मुहो लोगो ॥९०८॥ १. सत्थे ला० ॥ २. कप्पदुमे सी' सं० ला० ॥ ३. उप्पालमूयगा सं० । वप्पालपूयगा हं० की०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689