Book Title: Painnay suttai Part 1
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 646
________________ ४८९ २०. तित्थोगालीपइन्नयं ४४२७. रिद्धिस्थिमियसमिद्धं भारहवासं जिणिंदकालम्मि । बहुअच्छेरयपुण्णं उसभातो जाव वीरजिणो ॥८८६॥ ४४२८. दससु वि वासेसेवं दस दस अच्छेरगाइं जायाई। ओसप्पिणीए एवं तित्थोगालीए भणियाइं ॥ ८८७॥ ४४२९. उवसग्ग १ गब्भहरणं २ इत्थीतित्थं ३ अभब्विया परिसा ४। कण्हस्स अवरकंका ५ अवयरणं चंद-सूराणं ६ ॥८८८॥ ४४३०. हरिवंसकुलुप्पत्ती ७ चमरुप्पाओ ८ य अट्ठसय सिद्धा ९ । अस्संजयाण पूया १० दस वि अणतेण कालेणं ॥८८९॥ ४४३१. लोगुत्तमपुरिसेहिं चउपण्णाए इहं अतीएहिं । सुबहूहि केवलीहि य मणपज्जव-ओहिनाणे(णी)हिं ॥ ८९०॥ ४४३२. बहुरिद्धिप्पत्तेहि य मइ-सुयनाणे(णी)हि पुहइसारेहिं । कालगतेहिं बुहेहिं मोक्खं विण्णाणरासीहिं ॥८९१॥ ४४३३. तेहि य समतीएहिं भरहे वासम्मि राय-दोसेहिं । अप्पोदतो व्व वप्पो जातो संभिण्णमज्जादो ॥ ८९२॥ [गा. ८९३-९२३. दूसमासमाए भावा] ४४३४. जह जह क्चति कालो तह तह कुल-सील-दाणपरिहीणो। अहियं अहम्मसीलो सच्चवयणदुल्लभो लोगो ॥८९३॥ ४४३५. विवरीयलोगधम्मे परिहायंते पणट्ठमज्जाए। सक्कार-दाणगिद्धा कुहम्मपासंडिणो जाता ॥८९४ ॥ ४४३६. होहिंति य पासंडा मंतक्खर-कुहगसंपउत्ता य। मंडल-मुद्दाजोगा वस-उच्चाडणपरा य दढं ॥ ८९५॥ ४४३७. तेहिं मुसिज्जमाणो लोगो सच्छंदरइयकव्वेहिं। . अवमाग्गि(? न्नि)यसब्भावो जातो अलितो य पलितो य ।। ८९६॥ १. भग्योदतो सं० हं० ला.॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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