Book Title: Painnay suttai Part 1
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 671
________________ ५१४ पइण्णयसुत्तेसु ४७०१. कोडाकोडीकालो दो चेव य होंति सागराणं तु । सूसमदुसमा एसा चउत्थअरगम्मि वक्खाया ॥ ११६०॥ ४७०२. एत्तो परं तु वोच्छं सुसमाए किंचि एत्थ उद्देसं । जह होइ मणुय-तिरियाण कप्परुक्खाण वुड्डी उ ॥ ११६१ ॥ ५ [गा. ११६२-६९. आगमेस्सुस्सप्पिणीए पंचमस्स सुसमाअरगस्स भावा, कप्परुक्खवण्णणं च ४७०३. जह जह वडति कालो तह तह वर्धृति आउ-दीहादी। उवभोगो य नराणं तिरियाणं चेव रुक्खेसु ॥११६२॥ ४७०४. अणिगणि १ दीवसिहा २ तुडियंगा ३ भिंग ४ कोविणं ५ उंदुसुहा ६ चेव। आमोदा७ य पमोदा ८ चित्तरसा ९ कप्परुक्खा १० य ॥११६३॥ ४७०५. वत्थाई अणिगणेसुं १, दीवसिहा तह करेंति उज्जोयं २ । तुडियंगेसु य गेजं ३, मिंगसु य भायणविहीओ ४ ॥११६४ ॥ ४७०६. कोवीणे आभरणं ५, उद्सुहे भोगवन्नगविहीओ ६। आमोएसु य व(म)ज ७, मल्लविहीओ पमोएसु ८ ॥११६५॥ ४७०७. चित्तरसेसु य इट्ठा नाणाविहसाउभोयणविहीओ ९ । पेच्छामंडवसरिसा बोधव्वा कप्परुक्खेसु(क्खा उ)१०॥११६६॥ ४७०८. जह जह वइति कालो तह तह वडूंति आउ-दीहादी। उवभोगा य नराणं तिरियाणं चेव रुक्खेसु ॥११६७॥ २० ४७०९. दोगाउयमुग्विद्धा ते पुरिसा ता य होति महिलाओ। दोन्नि पलिओवमाइं परमाउं तेसि बोधव्वं ॥ ११६८॥ ४७१०. एसा उवभोगविही समासतो होइ पंचमे अरगे। कोडाकोडी तिन्नि उ, छटुं अरगं तु वोच्छामि ॥११६९॥ १. कोवीणा हं० की०॥ २. उदुसहा सं० ला०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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