Book Title: Painnay suttai Part 1
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
________________
२०. तित्थोगाली पइन्नयं
४६९०. एतेसिं तु नवण्हं पडिसत्तू चेव तत्तिया जाणे । गरुयपडिवक्खमहणा तेसिं नामाणिमे सुणह ॥ ११४९ ॥
४६९१. तिलए १ य जंघलोहे (लोहजंघे ) २ य वइरजंघे ३ य केसरी ४ चेव । पहराए ५ स ( अ ) पराजिय ६ भीम ७ महाभीम ८
सुग्गीवे ९ ॥ ११५० ॥ ५
४६९२. एते खलु पडिसत्तू कित्तीपुरिसाण वासुदेवाणं । सव्वे य चक्कजोही, सव्वे वि हता सचक्केहिं ॥ ११५१ ॥ ४६९३. एवं एते भणिया उसप्पिणीए उ उत्तमा पुरिसा । गरुयपरक्कमपयडा सम्मद्दिट्ठी चउप्पण्णं ॥ ११५२ ॥ ४६९४. तेसीति लक्ख णव उ तिसहस्सा नव सता य पणनउया । मासा सत्तऽद्धमदिणा य धम्मो चउसमाए ॥ ११५३ ॥ ४६९५. जाव य पउमजिनिंदो जाव य विजओ वि जिणवरो चरिमो । इय सागरोवमाणं कोडाकोडी भवे कालो ॥ ११५४ ॥
४६९६.. उस्सप्पिणीइमीसे दूसमसुसमा उ वन्निया एसा ।
प. ३३
अरगो य गतो तइओ चउत्थमरगं तु वोच्छामि ॥ ११५५ ॥
४६९७. पलितोवमलेहद्धं परमाउं होइ तेसि मणुयाणं । उक्कोस चउत्थीए पवड्ढमाणा उ रुक्खादी ॥। ११५६ ॥ ४६९८. जह जह वड्डुइ कालो तह तह वÇति कप्परुक्खा वि । एकं गाउगमुच्चा नर-नारी रूवसंपण्णा ॥ ११५७ ॥ ४६९९. मूल-फल-कंद-निम्मलनाणाविहइट्ठगंधरसभोई ।
ववगतरोगाऽऽतंका सुरूय सुरदुंदुहित्थणिया ॥ ११५८ ॥ ४७०० सच्छंदवणविहारी ते पुरिसा ता य होंति महिलाओ । निच्चोउयपुप्फफला ते वि य रुक्खा गुणसमिद्धा ॥ ११५९ ॥
Jain Education International
[गा. ११५६ - ६१. आगमस्सुस्सप्पिणीए चउत्थस्स सुसमदू समाअरगस्स भावा ]
५१३
For Private & Personal Use Only
१०
१५
२०
२५
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689