Book Title: Painnay suttai Part 1
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 652
________________ २०. तित्थोगालीपइन्नयं ४४९५. रयणीपमाणमेत्ता उक्कोसेणं तु वीस-सोलाऊ । बहुपुत्त-नत्तुसहिया निल्लज्जा विणयपरिहीणा ॥ ९५४ ॥ ४४९६. नट्ठग्गिहोमसक्कर[? य]भोइणो सूरपक्कमंसासी । अणुगंगसिंधु-पव्वयबिलवासी कूरकम्मा य ॥ ९५५॥ ४४९७. होहिंति य बिलवासी बावत्तरि ते बिला उ वेयड़े। उभतो तडे नदीणं नव नव एकेक्कए कूले ॥ ९५६॥ ४४९८. सेसं तु बीयमेत्तं होही सव्वेसु जीवजातीसु । कुणिमाहारा सव्वे नीसाए संझकालस्स ॥ ९५७॥ ४४९९. रहपहमेत्तं तु जलं होही बहुमच्छ-कच्छभाइण्णं । तम्मि समए नदीणं गंगादीणं दसण्हं पि ॥ ९५८॥ ४५००. अहमा य सूरभीरू निसाचरा बिलगया य दिवसम्मि । गंगा-सिंधुनदीणं काहिंति ततो थले मच्छा ॥ ९५९ ॥ ४५०१. गंगा सिंधू य नदी वेयगिरी य भरहवासम्मि । एयाइं नवरि तिन्नि वि होहिंति, न होहिती सेसं ॥९६०॥ ४५०२. इगवीससहस्साई भणिया अतिदूसमा उ वीरेणं । रायगिहे गुणसिलए गोयममादीण सीसाणं ॥ ९६१॥ ४५०३. ओसप्पिणी उ एसा कोडाकोडीओ होइ दस चेव । अयरोवमाण निययं अरगा छ च्चेव वक्खाया ॥ ९६२॥ ४५०४. एत्तो परं तु वोच्छं ओसप्पिणीए उ किंचि उद्देसं । इगवीससहस्साई अड्दूसम होइ वासाणं ॥ ९६३॥ ४५०५. दससु वि वासेसेसा काहिति दुक्खाई मणुय-तिरियाणं । होही असुरा भूमी मुम्मुरइंगालसमवण्णा ॥९६४ ॥ ४५०६. सी-उण्हं बिलवासी गमेंति कहकहवि दुक्खसंतत्ता । वसणविहूणा मणुया, इत्थीओ विगयचेलाओ ॥९६५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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