Book Title: Painnay suttai Part 1
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

View full book text
Previous | Next

Page 665
________________ ५०८ ५ ܐ पइण्णयसुत्ते ४६४२. एवं तित्थुपपत्ती दससु वि वासेसु होइ नायव्वा । एक्कारस ये गणहरा नव य गणा तस्स एमेव ॥ ११०१ ॥ ४६४३. सोहिय संववहारो सबभावो गरुयया खमा सच्चं । आउग-उच्चत्ताइं दससु वि वासेसु वहू॑ति ॥ ११०२॥ ४६४४. चंदसमा आयरिया, खीरसमुद्दोवमा उवज्झाया । साहू साहुगणा विय, समणीओ समियपावाओ ॥ ११०३ ॥ ४६४५. ससिलेह व्व पवत्तिणि, अम्मा-पियरो य देवयसमाणा । माइसमा वि सासू, ससुरा वि य पितिसमा हु तया ॥ ११०४ ॥ ४६४६. धम्माधम्मविहन्नू विणयन्नू सच्च- सोयसंपन्नो । गुरु साहुपूयणरओ सदारनिरतो जणो तइया ॥ ११०५ ॥ ४६४७. अप्प (१ ग्घ) इ य सविण्णाणो, धम्मे य जणस्स आयरो तइया । विजापुरिसा पुज्जा, धरिज्जइ कुलं च सीलं च ॥ ११०६ ॥ ४६४८. एवं कुसुमसमिद्धे जणवयवंसम्मि विहरते भगवं । नवसु वि वासेसेवं विहरेंति जिणा, जिणा बेंति ॥ ११०७॥ १५ ४६४९. सुबहूहिं केवलीहि य मणपज्जव ओहिनाणइड्डीहिं । समणगणसंपरिवुडा विहरेंति जिणा इ भुवर्णिदा ॥ ११०८ ॥ ४६५०. वड्डूइ जणवयवंसो नलिणिकुमारवररायवंसाओ । सज्झाओ वि य वडूति एवं कालाणुभावेणं ॥ ११०९ ॥ ४६५१. निवियकम्मजालो कत्तियबहुलस्स चरिमरातीए । सिज्झिहिति नाम पउमो अण्णाए पावनगरीए ॥ १११० ॥ ४६५२. नवसु वि वासेसेवं सिद्धत्यादी य जिणवरिंदा उ । साइम्मि जोगजुत्ते कत्तियबहुलस्स अंतम्मि ॥ ११११ ॥ ४६५३. एसा उ मते भणिया पउमजिणिंदस्स संकहा सु (पु) ण्णा । एतो परं तु जाणह जिणंतरा चेव पडिलोमा ।। १११२॥ १. वि हं० की ० ॥ २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689