Book Title: Painnay suttai Part 1
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 657
________________ ५०० पइण्णयसुत्तेसु ४५४९. दढधणु ३ दसधणुगो ४ वि य तत्तो सयधणु ५ पडिस्सुई ६ चेव । सम्मुति ७ सत्तमगो वि य गाम-नगर-पट्टणाइगरा ॥१००८॥ ४५५०. उस्सप्पिणीइमीसे बीतिसमाए य उत्तरंतीए । एत्थ बहुमज्झदेसे उप्पण्णा कुलगरा सत्त ॥१००९॥ ५ ४५५१. चउसु वि एरवएसुं एवं चउसु वि य भरहवासेसु । एकेक्कम्मि उ खेते होहिंति उ कुलगरा सत्त ॥१०१०॥ ४५५२. गाम-नगराऽऽगराणं गोउल-संवाह-सन्निवेसाणं । कुलनीति-रायनीतीण कोरगा कुलगरा तइया ॥१०११॥ ४५५३. आसा हत्थी गावो गहियाइं रज्जसंगहनिमित्तं । १० ववहारो लेहवणं होही सामाइ एसिं तु ॥१०१२॥ ४५५४. उग्गा भोगा राइण्ण खत्तिया संगहो भवे तइया । उप्पण्णे अगणिम्मि य रंधणमातीणि काहिति ॥१०१३॥ ॥ गोथासहस्सं गतं ॥ ४५५५. जह जह वडति कालो तह तह वडूंति स्व-सोभग्गा । जस कित्ति सील लज्जा नर-नारिंगणाण रिद्धीओ ॥१०१४ ॥ ४५५६. हलकरिसणकम्मत्ता सुवण्ण-मणि-रयण-कंस-दूसा वि । भोयण-गंधविहीओ वडूंती नरगणाण तहिं ॥ १०१५॥ ४५५७. दुद्ध दही नवणीयं घयं च तेलं च होहिती रम्मं । महु-मज्ज-भोयणाई वडूंती नरगणाण चिरं ॥१०१६॥ २० ४५५८. पढमो उ कुलगराणं नामेणं विमलवाहणो तइया । जातीसरी उँ राया काही कुल-रायधम्मे उ॥१०१७॥ ४५५९. एवं सव्वे काहिंति सुम्मती कुलगरो उ सत्तमतो। वेयगिरिसमीवे पुंडम्मि य जणवदे रम्मे ॥१०१८॥ १. कालगा ला. विना॥ २. 'गाथासहस्सं गतं' इति हं०-की. प्रत्यो स्ति॥ ३. ण कंमक्षा सं.। णकंसत्ता ला०॥ ४. यहं० की०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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