Book Title: Painnay suttai Part 1
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 653
________________ पइण्णयसुत्तेसु ४५०७. कुणिमाहारा सव्वे निसाचरा बिलंगता य दिवसम्मि । गंगादीहरमेत्ता (१) काहिंति ततो थले मीणे ॥९६६ ॥ ४५०८. ......" .........। .................. मेत्तीरहिया उ होहिंति ॥ ९६७॥ ५ ४५०९. वीसतिवासा मणुया दुहत्थउच्चा य होंति अंतम्मि । पढमं सोलसवासा हत्थुच्चा चेव होहिंति ॥ ९६८॥ ४५१०. तियपक्खिवग्ग सीहा चउप्पया पंचइंदिया जे य । गय-गो-महिसि-खरोटें पसू य विविहो य पाणिगणो ॥९६९ ॥ ४५११. आगमियाए उस्सप्पिणीए होहिंति बीयमेत्ताई। १० बावत्तरि जुयलाई नराण तत्तो पसवणाओ ॥ ९७० ॥ ४५१२. होहिंती बिलवासी बावत्तरि ते बिला उ वेयड़े। उभओ तडे नईणं नव नव एकेक्कए कूले ॥ ९७१ ॥ ४५१३. सेसं तु बीयमेत्तं होही सव्वेसि जीवजातीणं । कुणिमाहारा सव्वे निसा(स्सा)ए संझकालस्स ॥९७२॥ १५ ४५१४. रहपहमेत्तं तु जलं होही बहुमच्छ-कच्छभाइण्णं । तम्मि समए नदीणं गंगादीणं दसहं पि ॥ ९७३॥ ४५१५. विस-अग्गि-खारपाणियवरिसा मेघा य घोरवरिसा य । एक्कक्क सत्त राई होही भरहस्स अंतम्मि ॥ ९७४ ॥ ४५१६. चुन्नियसेलं संभिण्णसलिलगंभीरविसमभूमितलं । उदही जहा समतलं होही भरहं निरभिरामं ॥ ९७५ ॥ [गा. ९७६-८४. आगमेस्सुस्सप्पिणीए पढमस्स अइदूसमा अरगस्स भावा] ४५१७. ओसप्पिणीइमीसे वीतिकंताए चरिमसमयम्मि । तो आगमेसियाए उस्सप्पिणिए उ पट्ठवणा ॥ ९७६॥ 1. विगलता त दि सर्वासु प्रतिषु ॥ २. सर्वास्वपि प्रतिषु गाथेयं खण्डितैवोपलब्धा॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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