Book Title: Painnay suttai Part 1
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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२०. तित्थोगालीपइन्नयं ४५१८. ओसप्पिणीइमाए जो होही(१ होहऽइ)दुस्समाए अणुभावो ।
सो चेव [य] अणुभावो उस्सप्पिणिपट्ठवणगम्मि ॥ ९७७॥ ४५१९. सी-उण्हपउलिएहिं वित्ती तेसिं तु होइ मच्छेहिं ।
इगवीससहस्साई वासाणं निरवसेसा उ॥९७८॥ ४५२०. सी-उण्हपउलिएहिं वित्ती तेसिं तु होइ मच्छेहिं ।
बायालीससहस्सा वासाणं निरवसेसा उ॥९७९ ॥ ४५२१. अवसप्पिणीए अद्धं अद्धं उस्सप्पिणीए तहिं(? ह) होइ।
एयम्मि गते काले होहिंति उ पंच मेहा उ॥९८०॥ ४५२२. पुक्खलसंवट्टो १ वि य खीरोद २ घतोय ३ अमयमेहो ४ य ।
पंचमओ रसमेहो ५ सव्वे दसवरिसखेत्ता उ॥९८१॥ ४५२३. एकेको अणुबद्धं(? अणवरयं) वासीहिति सत्त सत्त दिवसाई ।
पंचत्तीसं(१ से) दिवसे वदलिया होहिती सोमा ॥ ९८२॥ ४५२४. पढमो उ निव्ववेहिति, धण्णं बितिओ करेहिई मेहो।
तइओ नेहं जणयइ, ओसहिमादी चउत्थो उ॥९८३॥ ४५२५. पंचमतो रसमेहो तेसि चिय पुढवि-रुक्खमादीणं ।
एवं कमेण जायं धण्णाइगुणेहिं उववेयं ॥९८४ ॥
[गा. ९८५-९८. आगमेस्सुस्सप्पिणीए बिइयस्स
दूसमासमाअरगस्स भावा] ४५२६. उस्सप्पिणिदूसमदूसमाए पत्ताइ चरिमरातीए ।
वासिहिति सव्वराई महंतर(? य) निरंतरं वासं ॥९८५ ॥ ४५२७. तेण हरिया य रुक्खा तण-गुम्म-लेया-वणप्फतीओ य ।
अमियस्स किरणजोणी पंचत्तीसं अहोरत्ता ॥९८६ ॥
२०
१. 'लया व जेणप्फत्तीओ सं० । 'लया य जेणप्पत्तीमो की०। लया व जेण प्पत्तीनो हं० ला। अत्र मूले सम्पादकेन परिकल्पितः पाठोऽस्ति ।
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