Book Title: Painnay suttai Part 1
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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૪૮
१० ३९६७. बेंटुट्ठाई ( ? ) सुरभिं जल-थलयं दिव्वकुसुमनीहारिं । पयरेंति समंतेणं दसद्भवन्नं कुसुमवासं ॥ ४२६ ॥ ३९६८. तत्तो य समंतेणं कालागुरु-कुंदुरुक्कमीसेणं ।
गंधेण मणहरेणं [? च] धूवघडियं विउव्वेंति ॥ ४२७ ॥ ३९६९. उक्किडिसीहनादं कलयलसद्देण सव्वओ सव्वं । तित्थगरपायमूले करेंति देवा निवयमाणा ॥ ४२८ ॥ ३९७०. अब्भंतर - मज्झ - बहिं विमाण - जोइसिय-भवणवासिकया । पागारा तिन्नि भवे रयणे कणगे य रयए य ॥ ४२९ ॥ ३९७१. मणि-रयण-हेमया वि य कविसीसा, सव्वरयणिया दारा । सव्वरयणामय च्चिय पडाग-धय- तोरणविचित्ता ॥ ४३० ॥
१५
पण्णत्ते
[गा. ४२२ - ४७. वित्थरओ समवसरणवण्णणा ] ३९६३. उप्पण्णम्मि अणंते, नट्ठम्मि य छाउमत्थिए नाणे । तो देव-दाणविंदा करेंति पूयं जिणिंदाणं ॥ ४२२ ॥ ३९६४. भवणवइ वाणमंतर जोइसवासी विमाणवासीय ।
सव्विड्ढी परिसा कासी नाणुप्पयामहिमं ॥ ४२३ ॥ ३९६५. मणि-कणग-रयणचित्तं भूमीभागं समंतओ सुरभिं । आजोयणंतरेण करेंति देवा विचित्तं तु ॥ ४२४ ॥ ३९६६. मणि-कणग-रयणचित्ते समंतओ तोरणे विउर्व्विति । सच्छत्त-सालि (ल) भंजिय-मयरद्धयचिंधसंठाणे ॥ ४२५ ॥
२०
३९७२. चेइदुम-पेढ - छंद ग - आसण- छत्तं च चामराओ य ।
जं चऽण्णं करणिज्जं करेंति तं वाणमंतरिया ॥ ४३१ ॥ ३९७३. सूरो (१ सूरुद ) य पच्छिमाए ओगाहंतीए पुव्वओ ऐति । दोहि परमेहि पाया मग्गेण य होंति सत्तऽन्ने ॥ ४३२ ॥
१. बिठाई ६० की ० । “वेंटट्ठाइ " आवश्यक निर्युक्तौ गा० ५४६, पदस्यास्य हारिभद्रीयवृत्तिथा - " वृन्तस्थायि " ॥ २. उक्किसी सं० ॥ ३. 'नाए ६० की ० ॥ ४ तेति सं० की ० ॥
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