Book Title: Painnay suttai Part 1
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 637
________________ पदण्णयसुत्तेसु . ४३२२. भवणाओ निग्गओ सो सारंगे परियणेण कड़ितो। मत्तवरवारणगओ इ(१)ह पत्तो राउलद्दारं ॥ ७८१ ॥ ४३२३. अंतेउरं अइगतो विणीयविणओ परित्तसंसारो। काऊण य जयसद्दो रण्णो पुरतो ठिओ आसि ॥ ७८२॥ ५ ४३२४. अह भणइ नंदराया 'मंतिपयं गिण्ह थूलभद्द ! महं । पडिवजसु तेवढाइं तिण्णि नगराऽऽगरसयाई ॥७८३॥ ४३२५. रायकुलसरिसभूए सगडालकुलम्मि तं सि संभूओ। सत्थेसु य निम्मातो गिण्हसु पिउसंतियं एवं' ॥ ७८४ ॥ ४३२६. अह भणइ थूलभद्दो गणियापरिमलसमप्पियसरीरो। 'सामी ! कयसामत्थो पुणो [वि भे विण्णवेसामि' ॥ ७८५॥ ४३२७. अह भणति नंदराया 'केण समं दाइं तुज्झ सामत्थं १ । को अण्णो वरतरतो निम्मातो सव्वसत्थेसु ?' ॥ ७८६ ॥ ४३२८. कंबलरयणेण ततो अप्पाणं सुट्ठ संवरित्ताणं। अंसूणि निण्हुयंतो असोगवणियं अह पविट्ठो ॥ ७८७॥ १५ ४३२९. जत्तियमेत्तं दिण्णं जत्तियमेतं इमं मि भुत्तं ति। एत्तो नवरि पडामो झसो व्व मीणाउलघरम्मि ॥ ७८८ ॥ ४३३०. आणा रजं भोगा रण्णो पासम्मि आसणं पढमं । सुव्वत्त इमं न खमं, खमं तु अप्पक्खमं काउं ॥ ७८९॥ ४३३१. केसे परिचिंतंतो रायकुलाओ य जे परिकिलेसे । नरएसु य जे केसे तो ढुंचति अप्पणो केसे ॥ ७९० ॥ ४३३२. तं चिय परिहियवत्थं छेत्तूणं कुणइ अग्गतो आरं । कंबलरयणोगुठिं काउं रण्णो ठिओ पुरतो ॥ ७९१॥ ४३३३. 'एयं मे सामत्थं भणाइ अवणेहि(इ) मत्थतोगुंठिं'। तो णं केसविहूणं केसेहि विणा पलोएति ॥ ७९२॥ १. अंसूण निण्हयंतो हं० की०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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