Book Title: Painnay suttai Part 1
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 643
________________ ४८६ पइण्णयसुत्तेसु ४४९२. कम्मजलविसोहिसमुन्भवस्स सुयरयणदीहनालस्स । पंचमहव्वयथिरकण्णियस्स गुणकेसरालस्स ॥ ८५१ ॥ ४३९३. सावगजणमहुयरिपरिवुडस्स जिणसूरतेयबुद्धस्स । संघपउमस्स भदं समणगणसहस्सपत्तस्स ॥ ८५२॥ [जुम्म] ५ ४३९४. नवसु वि वासेसेवं इंदो थोऊण समणसंघं तु। ईसाणो वि तह चिय खणेण अमरालयं पत्तो ॥ ८५३॥ ४३९५. दसवेतालियअत्थस्स धारतो संजओ तवाऽऽउत्तो। समणेहिं विप्पहीणो विहरीही एक्कगो धीरो ॥ ८५४ ॥ ४३९६. अटेव त गिहवासे, बारस वरिसाइं तस्स परियातो। एवं वीसतिवासो दुप्पसहो होहिही धीरो ॥८५५॥ ४३९७. छज्जीवकायहियतो सो समणो संजमे तवाउत्तो। भत्ते पञ्चक्खाते गच्छी अमरालयं धीरो ॥८५६॥ ४३९८. अट्ठ य वरिसे जम्म(१म्मा) बारस वरिसाइं होइ परियाओ। कालं काहि य तइया अट्टमभत्तेण दुप्पसहो ॥८५७॥ १५ ४३९९. सोहम्मे उववातो दुप्पसहजइस्स होइ नायव्वो। तस्स य सरीरमहिमा कीरीही लोगपालेहिं ॥८५८॥ ४४००. काउं मुणिस्स महिमं निययावासेसु तो गता तियसा। दससु वि वासेसेवं होही महिमा उ तित्थस्स ॥८५९॥ ४४०१. उववज्जिही विमाणे सागरनामम्मि सो य सोहम्मे। तत्तो य चइत्ताणं सिज्झीही नीरजो धीरो ॥८६०॥ ४४०२. पढमाए पुढवीए उप्पण्णो विमलवाहणो राया। सोहम्मे उववण्णं सावगमिहुणं च समणी य ॥८६१॥ ४४०३. वासाण सहस्सेण य इकवीसाए इहं भरहवासे।' दसवेतालियअत्थो दुप्पसहजइम्मि नासिहिती ॥ ८६२॥ १. कम्मरयजलोहविणिग्गयस्स सुय नन्दिसूत्रे॥ २. तेयमुद्धस्स सर्वासु प्रतिषु ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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