Book Title: Painnay suttai Part 1
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 627
________________ ४७० पइण्णयसुत्तेसु ४२०५. आलोइयनियसल्ला पञ्चक्खाणेसु निचमुज्जुत्ता । उच्छिप्पिहिति साहू गंगाए अग्गवेगेणं ॥ ६६४ ॥ ४२०६. केइत्थ साहुवग्गा उवगरणे धणियरागपडिबद्धा । कलुणाई पलोएंता वसहीसहिया उ वुझंति ॥ ६६५॥ ५ ४२०७. 'सामियसणंकुमारा ! सरणं ता होहि समणसंघस्स'। इणमो वेयावचं भणमाणाणं न वट्टिहिति ॥ ६६६॥ ४२०८. आलोइयनियसल्ला पञ्चक्खाणेसु धणियमुज्जुत्ता । उच्छिप्पिहिंति समणी गंगाए अग्गवेगेणं ॥ ६६७॥ ४२०९. काओ वि साहुणीओ उवगरणे धणियरागपडिबद्धा । कलुणपलोइणियातो वसहीसहियाओ वुझंति ॥ ६६८॥ ४२१०. 'सामियसणंकुमारा ! सरणं ता होहि समणसंघस्स' । इणमो वेयावचं भणमाणीणं न वट्टिहिति ॥ ६६९॥ ४२११. आलोइयनिस्सल्ला समणीओ पञ्चक्खाइऊण उज्जुत्ता । उच्छिप्पिहिंति धणियं गंगाए अग्गवेगेणं ॥ ६७०।। १५, ४२१२. केई फलगविलग्गा वचंती समण-समणिसंघाया । आयरियादी य तहा उत्तिन्ना बीयकूलम्मि ॥६७१॥ ४२१३. नगरजणो वि य वूढो कोई लद्धण फलगखंडाइं । समुतिन्नो बीयतडं, कोई पुण तत्थ निहणगतो ॥ ६७२॥ ४२१४. रण्णो य अत्थजायं पाडिवतो चेव कैकिराया य । एवं हवइ उँ बुड्डं, बहुयं वूढं जलोहेण ॥ ६७३॥ ४२१५. पासंडा वि य वण्डा (१) बूढा वेगेण कालसंपत्ता । चोइधरं (१चेइहरं) तित्थे (त्थ) वा पविरलमणुयं च संजायं ॥६७४॥ १. समणीण सं° प्रतिपाठः॥ २. श्री अगस्त्यसिंहस्थविराः कल्किराजसंबन्धिप्ररूपणाया निषेधं प्रतिपादयन्ति, तथा च तद्रचितदशवैकालिकसूत्रचूर्णि:-"अणागतमé ण निद्धारेजा-जधा कक्की अमुको वा एवंगुणो राया भविस्सति।" (अगस्त्यसिंहविरचितदशवैकालिकसूत्रचूर्णिः पृ० १६६ पं० २४-२५, प्राकृतग्रन्थपरिषतप्रकाशित पुस्तके)॥ ३. हु ला०॥ ४. तण्हा वू ला. विना॥ ५, वोइवरं ला• विना ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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