Book Title: Painnay suttai Part 1
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
View full book text
________________
४६८
पदण्णयसुत्तेसु ४१८१. सो अत्यपडित्थद्धो अण्णनरिंदे तणं विअ गणितो ।
अह सव्वतो महंतं खणाविही पुरवरं सव्वं ॥ ६४०॥ ४१८२. नामेण लोणदेवी गावीरूवेण नाम अहिउत्था (?)।
धरणियला उब्भूया दीसीहि सिलामयी गावी ॥ ६४१ ॥ ५ ४१८३. सा किर तइया गावीहोऊणं रायमग्गमोतिण्णा ।
साहुजणं हिंडंतं पाडेही सूसुयायंती ॥ ६४२॥ ४१८४. ते भिण्णभिक्खभायणविलोलिया भिण्णकोप्परनिडाला ।
भिक्खं पि हु समणगणा न चयति हुँ हिंडिउं नयरे ॥ ६४३॥ ४१८५. वोच्छंति य मयहरगा आयरियपरंपरागयं तचं ।
"एस अणागयदोसो चिरदिट्ठो वद्धमाणेणं ॥ ६४४॥ ४१८६. अण्णे वि अत्थि देसा लहुं लहुं ता इतो अवक्कमिमो ।
एसा वि हु अणुकप्पइ(१) गावीरूवेण अहिउत्था" ॥ ६४५॥ ४१८७. गावीए उवसग्गा जिणवरवयणं च जे मुणेहिति ।
गच्छंति अण्णदेसं, तह वि य बहवे न गच्छंति ॥ ६४६॥ १५ ४१८८. गंगासोणुवसग्गं जिणवरवयणं च जे मुणेहिति ।
गच्छंति अण्णदेसे, तह वि य बहुया न गच्छंति ॥ ६४७॥ ४१८९. 'किं अम्ह पलाएणं १ भिक्खस्स किमिच्छियाइ लभते'।
एवं विजंपमाणा तह वि य बहुया न गच्छंति ॥ ६४८॥ ४१९०. पुव्वभवनिम्मियाणं दूरे नियडे व्व अल्लियंताणं ।
कम्माण को पलायइ कालतुलासंविभत्ताणं १ ॥ ६४९॥ ४१९१. दूरं वचइ पुरिसो 'तत्थगतो निव्वुई लभिस्सामि'।
तत्थ वि पुवकयाइं पुवकयाइं पडिक्खंति ॥ ६५०॥ ४१९२. अह दाणि सो नरिंदो चउम्मुहो दुम्मुहो अधम्ममुहो।
पासंडे पिंडेउं भणिही 'सव्वे करं देह' ॥ ६५१॥
१. य हं. की०॥ २. "उच्छा हं० की। उत्ता ला० विना।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689