Book Title: Painnay suttai Part 1
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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४५०
पइण्णयसुत्तेसु ३९८५. एकेकीय दिसाए तिगं तिगं होइ सन्निविट्ठ तु ।
आइ-चरिमे विमिस्सा थी-पुरिसा सेस पत्तेयं ॥ ४४४ ॥ ३९८६. एतं महिडियं पणिवयंति ठियमवि वयंति पणमंता ।
न वि जंतणा, न विकहा, न परोप्परमच्छरो, न भयं ॥ ४४५॥ ५ ३९८७. बीयम्मि होति तिरिया, तइए पागारमंतरे जाणा ।
पागारजढे तिरिया वि हुंति पत्तेय मिस्सा वा ॥ ४४६॥ ३९८८. तित्थपणामं काउं कहेइ साहारणेण सद्देणं ।
सव्वेसिं सन्नीणं जोयणनीहारिणा भयवं॥४४७॥
[गा. ४४८-५१. दसखेत्तसमुद्भूयउसभाइजिणसमए
पडिक्कमण-संजमभेदाइपरूवणं] ३९८९. सपडिक्कमणो धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स ।
मज्झिमयाण जिणाणं कारणजाए पडिक्कमणं ॥४४८॥ ३९९०. जो जाहे आवजइ साहू अण्णयरगम्मि ठाणम्मि ।
सो ताहे पडिक्कमई मज्झिमयाणं जिणवराणं ॥४४९॥ १५ ३९९१. बावीसं तित्थयरा सामाइयसंजमं उवदिसंति ।
छओवठावणं पुण वयंति उसभो य वीरो य ॥४५०॥ ३९९२. एवं नवसु वि खेत्तेसु पुरिम-पच्छिम[ग]-मज्झिमजिणाणं ।
वोच्छं गणहरसंखं जिणाण, नामं च पढमस्स ॥४५१॥
[गा. ४५२-६४. चउव्वीसइजिणाणं गणहरा] २० ३९९३. उसभजिणे चुलसीती[य] गणहरा उसभसेणआदीया १ ।
अजियजिणिंदे नउतिं तु, सीहसेणो भवे आदी २॥४५२॥ ३९९४. चारू य संभवजिणे, पंचाणउती य गणहरा तस्स ३।
पढमो य वजनाभो अभिनंदण, तियऽधिकसयं तु ४ ॥४५३॥
१. पत्तं मप्रतिपाठः ॥
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