Book Title: Painnay suttai Part 1
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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२०. तित्थोगालीपइन्नयं ३८९६. कुंथू य भरहवासे एरवयम्मि य महाहिलोगबलो।
अरजिणवरो य भरहे, अइपासजिणो य एरवए ॥ ३५५॥ ३८९७. नमिजिणवरो य भरहे, एरवए सामकोटुंजिणचंदो ।
भरहम्मि य वीरजिणो, एरवए वारिसेणो ति ॥ ३५६॥ ३८९८. केवलनाणुज्जोइयजियलोय-पयत्थ-वत्थुसब्भावा ।
एते बत्तीस जिणा सुवण्णवण्णा मुणेयव्वा ॥ ३५७॥ ३८९९. चउसु वि एरवएसुं एवं चउसु वि य भरहवासेसु ।
अट्ठावीसं तु सयं पेसण्णि(सुवण्ण)वणं मुणेयव्वं ॥ ३५८॥
[गा. ३५९. दसखेत्तसमुब्भवजिणाणं संघयण-संठाणाई] ३९००. दससु वि वासेसेत्तो जिणिंदचंदाण सुणसु संठाणं ।
वजरिसभसंघयणा समचउरंसा य संठाणे ॥३५९॥
[गा. ३६०-८३. तित्थयर-चकि-केसवाणं देहमाण-आउपमाणाइ] ३९०१. बत्तीसं घरयाइं काउं तिरियाऽऽययाहि रेहाहिं।
उड्ढाययाहि काउं पंच घराइं तओ पढमे ॥ ३६० ॥ ३९०२. पनरसजिणं निरंतर, सुण्णदुर्ग, तिजिण, सुन्नतियगं च ।
दो जिण, सुन्न, जिणिंदो, सुण्ण, जिणो, सुन्न, दोण्णि जिणा ॥३६१॥ ३९०३. दो चक्कि, सुण्ण तेरस, पण चक्की, सुण्ण, चक्की, दो सुन्ना ।
चक्की, सुन्न, दुचक्की, सुन्नं, चक्की, दुसुन्नं च ॥ ३६२॥ ३९०४. दस सुण्ण, पंच केसव, पणसुन्नं, केसि, सुण्ण, केसी य ।
दो सुण्ण, केसवो वि य, सुण्णदुर्ग, केसव, तिसुन्नं ॥ ३६३॥ ३९०५. पंचसय १ अद्धपंचम २ चउरो ३ अद्भुट्ट ४ तिन्नि य सयाई ५।
___ अड्ढाइजा ६ दोन्नि ७ य दिवड्ढमेगं ८ धणुसयं च ९॥३६४॥
१. कोहजि° हं. की०॥ २. पसिण्णि' हंकी० ॥ ३. एतद् हात्रिंशद्गृहसूचकं यत्रं
प्रकीर्णकान्ते द्रष्टप्यम् ॥
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