Book Title: Painnay suttai Part 1
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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२०. तित्थोगालीपइन्नयं [गा. २९२-९३. उसभाइदसजिणाणं पव्वजा केवलनाणं च ३८३३. दस वि जिणिंदा समयं दाणं दाऊण वच्छरं एगे।
चेत्तबहुलऽट्ठमीए निक्खंता ते उ छट्टेणं ॥ २९२॥ ३८३४. फग्गुणबहुलस्सेक्कारसीय अह अट्ठमण भत्तेण ।
उप्पण्णम्मि अणंते महव्वया पंच पण्णवए ॥२९३॥
[गा. २९४-३०४. भरहाइदसचक्कीणं सेणा-चक्क-निहिआईणं वण्णणं] ३८३५. तस्सासि पढमतणओ चोदसरयणाहिवो मणुसिंदो।
भरहो नाम महप्पा अमरनरिंदोवमसिरीओ ॥ २९४ ॥ ३८३६. उप्पण्णचक्करयणं भरहं वन्नेमि रयणविभवेणं ।
सुरवइविमाणविभवं बत्तीससहस्सनिवनाहं ॥ २९५॥ ३८३७. छक्खंडभरहसामि नवनिहिनाहं महायसं चक्किं ।
हय-गय-रहाण लक्खा चउरासीतिं तु गुणपन्ना ॥ २९६॥ ३८३८. चउसट्ठिसहस्सवरंगणाण मुहपउमछप्पयं पयर्ड ।
छन्नउई कोडीओ पाइक्काणं पयंडाणं ॥ २९७॥ ३८३९. तरुणरविमंडलनिभं चक्कं १ छत्तं च सव्वरोगहरं २ ।
रिउदप्पहरं खग्गं ३ डंडं विसमें समीकरणं ४ ॥ २९८॥ ३८४०. चम्मरयणं अभेनं ५ मणिरयणं चेव सीसरोगहरं ६ ।
रवि-ससिकिरणपरद्धं कागिणिरयणं च तं पवरं ७॥ २९९ ॥ ३८४१. सेणावइं च सूरं ८ सेटिं वेसमणदेवपडितुलं ९।।
वड्ढइरयण मणोहर १० पुरोहियं चेव संतिकरं ११ ॥३०॥ ३८४२. रिउजीवियनिक्कालं हत्थि १२ आसं च वाउवेगसमं १३ ।
इत्थीरयण महप्पं(?ग्घं) १४ चोदस रयणाई भरहस्स ॥ ३०१॥ ३८४३. नवजोयणवित्थिण्णा नव निहओ अट्ठजोयणुस्सेहा ।
बारसजोयणदीहा हियइच्छियरयणसंपुण्णा ॥ ३०२॥ १. 'बहुलेका सर्वासाहो प्रतिषु ॥ २. °मे वि तं स हं० की० ला० ॥
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