Book Title: Painnay suttai Part 1
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 591
________________ ४३४ पइण्णयसुत्तेसु [गा. २८२-८४. भरह-बंभीआइपण्णासजुयलाण जम्मो] . ३८२३. छपु(प्पु)व्वसयसहस्सा पुचि जायस्स जिणवरिंदस्स । __ तो भरह-बंभि-सुंदरि-बाहुबली चेव जायाइं ॥ २८२॥ ३८२४. देवीसुमंगलाए भरहो बंभी य मिहुणयं जायं । देवीए सुनंदाए बाहुबली सुंदरी चेव ॥ २८३॥ ३८२५. अउणापण्णं जुयले पुत्ताण सुमंगला पुणो पसवे । नीतीण अइक्कमणे निवेयणं उसभसामिस्स ॥ २८४॥ [गा. २८५-९१. उसहसामिकयं विणीयानयरीठावणा सिप्पसिक्खा-रजविभत्तिआइ] १० ३८२६. ‘राया करेइ दंड' सिढे ते बेंति अम्ह वि स होउ'। 'मग्गह य कुलगरं 'सो य बेइ 'उसभो उ भे राया' ॥२८५॥ ३८२७. आभोएउं सक्को उवागओ तस्स कुणइ अभिसेयं । मउडाइअलंकारं नरिंदजोगं च से कुणइ ॥२८६॥ ३८२८. बिसिणीपत्ते इयरे उदयं घेत्तुं छुहंति पाएसु। 'साहुविणीया पुरिसा' विणीयनयरी अह निविट्ठा ॥ २८७॥ ३८२९. आसा हत्थी गावो गहियाई रजसंगहनिमित्तं । घेत्तूण एवमादी चउन्विहं संगहं कुणइ ॥ २८८ ॥ ३८३०. उग्गा भोगा राइन्न खत्तिया संगहो भवे चउहा। आरक्ख-गुरु-वयंसा सेसा जे खत्तिया ते उ ॥२८९॥ २. ३८३१. पंचेव य सिप्पाइं घड १ लोहे २ चित्त ३ णंत ४ कासवए ५। एकेकस्स य एत्तो वीसं वीसं भवे भेया ॥ २९०॥ ३८३२. पुत्तसयस्स पुरसयं निवेसियं तेण जणवयसयं च। इह भारहम्मि वासे सो पढमपती वसुमईए ॥ २९१॥ - १. भारक्खिगगुरु° सर्वासु प्रतिषु ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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