Book Title: Painnay suttai Part 1
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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२०. तित्थोगालीपइन्नयं ३६७५. नाणारयणविचित्ता वसुधारा निवडिया पगासंती।
गंभीरमहुरसद्दो तो दुंदुहिताडिओ गयणे ॥ १३४॥ ३६७६. देवोवयणपहाए रयणी आसी य सा दिवसभूया ।
पंडहगण-गीय-वाइय-कहक्कहुक्कुट्ठिसद्दाला ॥१३५॥ ३६७७. उड्ढ-मह-तिरियलोए वत्थव्वाओ दिसाकुमारीओ।
ओहिण्णाणेण जिणे जाए नाऊण तम्मि वैणे ॥१३६॥ ३६७८. जिणभत्तिहरिसियाओ ‘जीयं 'ति य जोयणप्पमाणेहि ।
सव्वायरपरिगप्पियजाणविमाणेहिं दिव्वेहिं ॥१३७॥ ३६७९. अह एंति तहिं तुरियं हरिसवसुक्करिसपुलइयंगीओ।
अभिवंदिऊण पयया थुणंति महुरस्सरा इणमो ॥ १३८॥ ३६८०. "तुम्ह नमो नवपंकयसरिसविबुझंतकोमलऽच्छीणं ।
जेहिं इमे सुयरयणे बूढे कुच्छीहिं जिणचंदे ॥१३९॥ ३६८१. तुब्भेऽत्थ सामिणीहिं वियडं तिभुवणमलंकियं पयर्ड।
पढमिल्ला जगगुरुणो जणिया तित्थंकरा जाहिं" ॥१४०॥ ३६८२. जिणजणणीओ थोउं भणंति ताओ सुचारुवयणाओ।
"अम्हे उवागयाओ भत्तीए दिसाकुमारीओ ॥१४१॥ ३६८३. जिणचंदाण भगवओ वोच्छिण्णपुणब्भवाण विणएण ।
काहामो जम्ममहं, तुब्भेहिं न भाइयव्वं" ति ॥१४२॥ ३६८४. सोमणस-गंधमायण-विजुप्पभ-मालवंतवासीओ।
____ अट्ठ दिसदेवयाओ वत्थव्वाओ अहेलोए ॥१४३॥ ३६८५. भोगंकर १ भोगवती २ सुभोग ३ तह भोगमालिणि ४ सुवच्छा ५।
तत्तो चेव सुमित्ता ६ अप्रिंदिया ७ पुप्फमाला ८ य ॥१४४॥
१. पमह सं० हं० । पमहागण° की० ॥ २. अस्मिन् प्रकीर्णके ‘वण' शब्दः 'आलय' अर्थेऽपि योजितोऽस्ति ॥ ३. सुवच्छा वच्छमित्ता य वारिसेणा बलाहगा ॥ इति स्थानाङ्गसूत्रे (आगमोदयसमितिप्रकाशितावृत्तौ ४३७ तमं पत्रम्) ॥ ४. 'सुमित्ता' स्थाने 'वच्छमित्ता' इति स्थानाङ्गसूत्रे 'चठप्पन्नमहापुरिस चरियं' ग्रन्थे (पृ. ३५) च। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितेऽप्यत्र 'वत्समित्रा'
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