Book Title: Painnay suttai Part 1
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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पइण्णयसुत्तेसु ३६८६. एयाओ पवणेणं सुभेण ते जम्मभूमिवणसंडे ।
आजोयणं समंता सोहेंति पहट्ठमणसीओ ॥१४५॥ ३६८७. अमणुण्णदुरभिगंधितण-सक्कर-पत्तविरहियं काउं।
महुरं गायंतीओ पासे चिट्ठति जणणीणं ॥ १४६॥ ५ ३६८८. मेहंकर १ मेहवई २ सुमेह ३ तह मेहमालिणि ४ विचित्ता ५।
तत्तो य तोयधारा ६ बलाहका ७ वारिसेणा ८ य ॥१४७॥ ३६८९. नंदणवणकूडेसु एयाओ उडलोगवत्थव्वा ।
तुरियं विउव्विऊणं सगज्जियसविज्जुले मेहे ॥१४८॥ ३६९०. तो चिक्खल्लविरहियं सुसुरहिजलबिंदुविद्दवियरेणुं ।
घाण-मणनेव्वुइकरं करेंति वसुधातले(?) तत्थ ॥१४९॥ ३६९१. पुणरवि जलयं थलयं सव्वोउयसंभवं सुरभिगंधिं ।
वासंति कुसुमवासं सुगंधगंधेहिं वामीसं ॥१५०॥ ३६९२. तो तं दसद्धवणं पिंडग[भू]यं छमायले विमले।
सोहइ नवसरयम्मि व सुनिम्मलं जोइसं गयणे ॥१५१॥ १५ ३६९३. तह कालागरु-कुंदुरुयधूवमघ[मघ]मतदिसि[१य] कं(१ कं)।
काउं सुरकण्णाओ चिट्ठति पगायमाणीओ ॥१५२॥ ३६९४. नंदुत्तरा १ य नंदा २ आणंदा ३ नंदिवद्धणा ४ चेव।
विजया ५ य वेजयंती ६ जयंति ७ अवरॉइअट्टमिया ८॥१५३॥
इत्यस्ति, यद्यपि जैनधर्मप्रसारक सभा जैन-आत्मानन्दसभाप्रकाशितावृत्त्योर्मूलपाठे पञ्चम-षष्ठदिकुमार्यो 'तोयधारा ५ विचित्रा ६' इति नाम्न्यौ स्वीकृते (पर्व १ सर्ग २ श्लोक २७४) किन्तु द्वयोरप्यावृत्त्योः 'सुवत्सा ५ वत्समित्रा ६' इति ताडपत्रीयप्रत्युपलब्धः शुद्धपाठः पाठान्तरत्वेन निर्दिष्टोऽस्ति ॥ १. अत्र मूलस्थपाठानुसारी पाठः 'चटप्पन्नमहापुरिसचरियं' ग्रन्थे। “मेघंकरा मेघवती सुमेघा मेघमालिणी। तोयधारा विचित्ता य पुप्पमाला अणिंदिया ॥” इति स्थानाङ्गसूत्रे (आगमोदयसमितिप्रकाशितावृत्तौ ४३७ तमं पत्रम् )। " मेघंकरा मेघवती सुमेघा मेघमालिनी। तोयधारा विचित्रा च वारिषेणा बलाहिका ॥” इति त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरिते (पर्व १ सर्ग २ श्लोक २८२ जैनधर्मप्रसारकसभाप्रकाशिते); जैन-आत्मानन्दसभाप्रकाशने त्वत्रोत्तरार्द्ध यथा-" सुवस्सा वत्समित्रा च वारिषेणा बलाहिका ॥" पुनरत्रैव स्थाने शुद्धपाठः पाठा-न्तरत्वेन निर्दिष्टोऽस्ति तत्र ॥ २. गइ छमा सं० ला० ॥ ३. सर्वास्वपि प्रतिषु अन्न द्वितीयचरणे पाठत्रुटिरस्ति ॥ ४. अवराइआ+ अट्ठ' =अवराइअट्ठ॥
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