Book Title: Painnay suttai Part 1
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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१९. जोइसकरंडगं पइण्णयं
३४०२. चंदस्स विणातव्वा आउट्टीओ जुगम्मिं जा दिट्ठा । अभिजीए पुस्सेण य णियतं णक्खत्तंसेसेणं ॥ २६६ ॥ ३४०३. पण्णरसेव मुहुत्ते योजित्ता उत्तरासाढाणं ।
एक्कं च अहोरत्तं पविसति अभितरं चंदो ॥ २६७॥ ३४०४. दस य मुहुत्ते सगले मुहुत्तभागे य वीसतिं चेव ।
सविसयं अभिगतो बहिता अभिणिक्खमति चंदो ॥ २६८ ॥ ३४०५ एता आउट्टीओ मँणिता मे वित्थरं पमोत्तूर्णं ।
णक्खत्त-सूर-ससिणो गतिं तु सुण मंडलेसुं तु ॥ २६९ ॥
[गा. २७०-७५. चोदसमं मंडलमुहुत्त गति पाहुडें ] ३४०६. एगूणसट्ठिरुवा संतहिं अधिगा य तिण्णि अंससता । तिण्णेव य सत्तट्टा छेदो तेसिं च बोद्धव्व ॥ २७० ॥ ३४०७. एतेण तु भजितव्वो मंडलरासी हवेज जं लैद्धं ।
सो होति मुहुत्तगत रिक्खाणं मंडले णियतो || २७१ ॥ ३४०८. मंडलपरिरयरासी सट्ठीय विभाजितम्मि जं लद्धं ।
सासूरमुहुतगती तहिं तहिं मंडले णियया ॥ २७२ ॥ ३४०९. बावडिं पुण रूवा तेवीसं अंसगा य बोद्धव्वा ।
"दो चेव एक्कवीसा छेदो पुण तेसि बोद्धव्वो ॥ २७३ ॥ ३४१०. तेहि तु भजितव्वो मंडलरासी हवेज्ज जं लद्धं ।
सा सोममुहुत्तगती तहिं तर्हि मंडले वति ॥ २७४ ॥
१. म्मि उवदिट्ठा। अभिईण य जे० खं० ॥ २. अभिणं पु सूटी० ॥ ३. तसेसाणं पु० वि० । 'तमासम्मि जे० खं० ॥ ४. जोएत्ता उत्तराभसाढाओ। एगं च जे० खं० पु० मु० म० ॥ ५. 'रायण असा जेटि० खंटि० ॥ ६. उवगतो जे० खं० ॥ ७. भणियाओ वित्थरं पजहिऊणं जे० खं० ॥ ८. गई उ सुण पु० वि० मु० । गनी तु सुण जे० खं० ॥ ९. मंडलं भणियं जे० खं० ॥ १०. सत्तहिं सहिया य जे० खं० ॥ ११. छेदो पुण तेसि बो० जे० खं० पु० वि० मु० म० ॥ १२. लं । नक्खत्तमुहुत्तगती सा नियमा (? या ) मंडले हवति ॥ जे० खं० । 'लं । सा होति मुहत्तगती रिक्खाणं मंडले नियया ॥ पु० मु० म० ॥ १३. बे चेव जे० खं० पु० ॥ १४. एएण तु जे० खं० पु० मु० म० ॥ १५. नियया पु० मु० म० ॥
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