Book Title: Padmanandi Panchvinshatika
Author(s): Padmanandi, Gajadharlal Jain
Publisher: Jain Bharati Bhavan

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandie ॥८॥ शुद्धि ००००००००० अशुद्धि नारमाया पिशांत है कम्युरिय सब्बंध प्रष्ट ३३९ ३४५ ३४९ ३२ शुद्धि नात्मीया सिद्धांत है कन्चुरिय सम्वट्ठ विठ्ठ दिट्रपणिहा दिट्टा णट्र णिविग्धं दिठ्ठपणिट्ठा दिट्ठा ३५८ ३५० ३७२ णिब्विाचं पुरस सहीणे पंक्ति वशति पृष्ठ पंक्ति अशादिशाति दृष्टे दिहे ४०० १६ कामासक्तचियामपि कामासक्तधियामपि४४६७ | उद्रमिते सद्गमिते ४०३ ३ शुम्राधालेशौ शुभ्राभलेशौ ४५१ क्योंकि क्योंकि ४०४ वस्तुतत्वकथनात् वस्तुतत्वकथनात्४५२ वर्धने बर्धने ४२२ १६ सस्वती सरस्वती ४५२ पदाथोंको पदाथाको ४२५ १७ वद्धः बद्धाः वृहस्पति वृहस्पति ४२६ १३ शुचिपुष्पसुरैः शुचिपुष्यसरेः ४५६ क्षतब्ये अंतर्व्य ४२६ १४ कुर्वन् ४५८ वाणीका चपलता है वाणीकी चपलताहे ४२७१ किकरे त्र किंकरेऽत्र ४०. बाबदूकपनेको वावदूकपनेको ४२७ कुर्वे ४६१ जीवोंको जीवोंका ४२८ १५ मतिविनतो मति विभ्रमतो ४६४ नसत्तत्वका उसतत्त्वका ४३० अभिमानी है अभिमानी हैं ४६४ बेष्ठित हुवा वेष्टितहुवा ३३१ तत्वोंक्य तत्वों का ४६६ ध्वजाकी यारी है वजाकाधारीहै४३१ १६ मध्यान्हकाळ मध्याहकाळ ४७१ बातकी यात पळभरमें पलभरमें ४३६ ५ चिंतायमपि चिंतायामपि ४९१ १२ कोन होगा कौन होगा ? ४३५१ बिना प्रयोजनका विना प्रयोजनका५०० ११ कैथुनाथ भगवान कुंथुनाथ भगवानके४३७८| इसकी बराबर इधके वरावर ५०४ ४। बीसवे बीसवे४३९ १०। पुरमओ MERAUNAM 440000000०००००००००००००००००000000000000000000000000000001 सल्लीणो उसस ३८० सव्वंपि सहली आइ ३८८ दिढे ३८८ दिट्ठी ३९२ कराउलं सस्वीप सहळदिआइ रानल ll૮ાા For Private And Personal

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