Book Title: Padmanandi Panchvinshatika
Author(s): Padmanandi, Gajadharlal Jain
Publisher: Jain Bharati Bhavan

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ॥७॥ अशुद्धि संपति वहुभिः बधेः संवन्धी 200000000000000000000००००००००००००००००००००००००००००००००००० द्वतता उत्तमतत्व सबंधोऽपि तत्वं तत्वामुर्द इंसी में पृष्ठ पंक्ति अशुद्धि पृष्ठ पंक्ति अशुद्धि शुद्धि संपत्ति तराम् २३१ १३ मणि मणी भवंधनो अवंधनी २७३ तत्त्वं १६३ बद्धमहसो बद्धमहसो तख तरर्व २७४ बुध अवश्यकतानहीआवश्यकतानहीहै२३७ १६ परमात्मतखके परमात्मतत्वक २७६ सबन्धो १७१ तत्वं तत्त्वं २३९ वादिना बहिना संबंधे तत्त्वं तत्वं तत्त्वं २८० द्वैततो १७३ ३ संबन्ध संबंध बदसेवया बदसेवया उत्तमतत्त्व है१७६ १६ तद्वाणं २४४ १६ तत्वज्ञान तत्त्वज्ञान संबंधाऽपि १८. ५ कर्मवधवतया कर्मवेधनतया २४६ वक्ष्ये वक्ष्येनु ३०० तत्व १८० १३ वहिरंगमल से बहिरंगमलसे २४८८ सदाश्रित तदाश्रित तस्वामृतं १८१ १ कमहुमाया कम हुवा था २४९ सत्वं तत्त्वं इंसिनी में १८५ १५ मध्यान्ह मध्याह २४९ ११ संबंधतो संबंधतो ३०४ मेव १८८७ भसारभतही है असारभूतही २५० कर्मरूपीवीजसे कर्मरूपीब।जसे ३०८ शून्यमठे १९१ ३ स्मृत्तिपथप्रस्थापि स्मृतिपथप्रस्थााय २५२९ संबंधसे संबंधसे ३११ भ्यानामृतं १९१ १० मूत्या न मृत्याने २५५ १४ वद्धो बद्धो भन्यजीवोंको १९२ १० घमेसे तत्त्व तत्त्वं मन में २०.१२ बहिस्थित बदिः स्थित २५८ बद्ध संवर्धतेतराम्२०२१२ सन्दक्षेतर सद्रक्षेतर २५८ बोधान बोधात भावयन्नित्यं २०९ ११ पलडेपरतो पलपरतो २६३ १४ शब्दैः दूरीकृत २१८ ५ पर्यन्क पर्य २६४ भनिरवत्वपंचाशत् निश्चयपंचाशत् ३३२ स्यामनु २२३ ४ा हो जाते है हो जाता है २६४ संसती - यतिः ३३६ अवधिदृशः २३१ १' तन्ही को उसी की २६४ ९ विधानकी विधानि कि ३६३० शून्यपेठे ध्यानमृत भब्यजीवोंको मममें संवर्धमततरा भावयन्नित्यं दूरीकृत स्पामनु अवभिशः Hon For Private And Personal

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