Book Title: Nay Rahasya
Author(s): Yashovijay Gani
Publisher: Andheri Gujarati Jain Sangh

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Page 15
________________ विषय ___ पृष्ठ विषय २१४, कृस्प्रत्ययार्थ उत्पत्ति का प्रातिपदिकार्थ. २२४ सिद्धत्व की सिद्धत्वविशिष्ट साध्यता मे अनन्वय दोष में व्याप्ति २१६ नामार्थ प्रकारक धात्वर्थ विशेष्यक बोध की सम्भावना अशक्य २२५ निश्चयनय के सामने व्यवहारनयः से १७ नय धातु की नाशत में लक्षणा दीर्घशंका का समाधान कर के अन्षय की उपपत्ति २२६ निश्चयनय में कार्य हेतुक अनुमानो२१८ लक्ष्यार्थ प्रकारक बोध चिन्तामणिकार को सम्मत च्छेद की शका २१९ आल्बाता संख्या के अन्वय का २२८ क्रियमाण कृत नहीं है-व्यवहारनय विचार । २३. विचित्र नयवाद का फल रागद्वेषविलय २२० शक्तिप्रयोज्यत्वको कार्यतावच्छेदक, मानने में गौरव का विचार.. २३१ विविध नयों का भिन्न भिन्न २२१ : 'स्तोकपाक इत्यादि दो प्रयोग . अभिप्राय की उपपत्ति २३२ चरण-गुण स्थिति परममध्यस्थता २२२ 'नष्टो घटः' में प्रत्ययार्थ की चिन्ता २३३ ग्रन्थकार प्रशस्ति २२३ सिद्धत्व और साध्यत्व के विरोध २३४ दुर्जनोपेक्षा-सज्जनस्तुति की चिन्ता २२४ : 'कृत' में भिजवा, क्रियमाणकृत और २३५ नयरहस्य ग्रन्थ समाप्ति २३६ शुद्धिपत्रक

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