Book Title: Nay Rahasya
Author(s): Yashovijay Gani
Publisher: Andheri Gujarati Jain Sangh

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Page 14
________________ विषय पृष्ठ विषय १७० सकलादेश-विकलादेश, स्याद्वाद-नय १९२ अप्राप्तकाल निग्रहस्थान की प्राप्ति । १७२ कालादि आठ का स्वरूप १९२ इन्द्रिय क्षायोपशमिकभाव होने से १७३ लिगादि भेद से अर्थ भेद स्वीकार सिर्फ औदयिक भाव कैसे ? . . साम्प्रत की विशेषता १९३ एवम्भूतनय में सिद्ध में सत्त्वभाव १७४ पलालादि का अदहनादि कसे ? और आत्मत्व की उपपत्ति .. १७५ समभिरूढनय-सद्भूत अर्थों में असंक्रम १९४ नयों के द्वारा प्रमाणों का उपग्रह-अनुग्रह १७६ संक्रम में संकरादि दोष १७७ नैगमादिनयों में अतिव्याप्ति निवा ,, ,, में बलवान्-दुर्बलभाव इच्छाधीन १९५ विविध प्रकार से नयों का विभाजन रणोपाय १७८ सज्ञाभेद से अर्थ भेद में गूढाशय १९६ निश्चयादि में बलवत्ता आपेक्षिक १७९ भिन्न पदों से समानरूप से अर्थ- १९७ क्रियानय-ज्ञाननय में अपनी अपनी बोध असिद्ध विशेषता १८० पारिभाषिक संज्ञा में अनर्थकत्व १९८ सामग्री की व्याख्याने विनिगमना१८१ ,,-नैमित्तिक संज्ञा में साम्यापत्ति विरह का निवारण १९९ कृर्वद्रूप चरमकारण ही एकमात्र कारण१८२ एक पद में अर्थस क्रमवत् एक अर्थ दीर्घ आशंका मे पद सक्रम अमान्य २०० ‘क्रियमाण कृत ही है' इस का समर्थन १८३ एवम्भूतनय-व्यंजन और अर्थ का २०१ कृत के करण में असमाप्ति की आपत्ति अन्योन्य विशेष २०२ कुर्व दुरूपत्व में जातिसांकर्य की स्पष्टता १८४ व्युत्पत्त्यर्थ से अन्वित अर्थ का २०३ चक्रभ्रमणादि दीर्घ क्रियाकाल में घटास्वीकार नुपलब्धि का रहस्य | मिनाया जीवन का अस्वीकार २०५ भिन्न भिन्न कार्यकोटि की अनुपल१८६ जीवादिविषय मे सप्तनयाभिप्राय ब्धि क्यों ? १८७ 'नोऽजीव' पद का तात्पर्यार्थ २०६ सामग्रीकाल में कार्य व्याप्यता का नियम ___ एवम्भूत नय से जीवादि पद का २०७ 'क्रियमाणं कृत" यहाँ अन्वय अनुपपत्ति का अर्थ की दीर्घ शंका १८८ दिगम्बर मत में सिद्धात्मा ही जीव २०८ शका का निवारण १८९ शुद्धचैतन्यरूप प्राणधारण से जीव २१० 'नष्टो घटः' प्रयोग व्यवस्था की अनु१९० दिगम्बरमत की समीक्षा पपत्ति १९१ भाषप्राणधारण से सिद्ध मे जीवत्व २११ कृत्प्रत्ययार्थ उत्पत्ति में अतीतत्वादि की आशका और समाधान के अन्वय मे नियमभग १९१ ज्ञानाद्वैत और शुन्यवाद में पर्यव- २१३ एक पद से उपस्थापित दो अर्थों के सानापत्ति अन्षय का समर्थन पपत्ति

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