Book Title: Nay Rahasya
Author(s): Yashovijay Gani
Publisher: Andheri Gujarati Jain Sangh

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Page 13
________________ पृष्ठ विषय १२९ तत्त्वार्थभाष्यानुसारी व्यवहारनय की व्याख्या १३० 'कृष्ण' पद का उदभूतकृष्ण में तात्पर्य १३१ 'पंचवर्णवाला भ्रमर' प्रयोग में व्यावहारिकत्व की आशंका १३३ आशंका का समाधान १३४ व्यवहारनय में उपचारबहुलता का निदर्शन १३५ स्थापनानिक्षेप स्वीकार में शंका समाधान अर्धजरतीयन्याय का अर्थ ( टिप्पण) १३६ ऋजु सूत्रनय - प्रत्युत्पन्नार्थग्राही १३९ अतीत-अनागताकार ज्ञान से वैपरीत्य की शंका प्रत्यक्षज्ञान में अतीताद्याकार का अभाव- उत्तर " १४० तस्वार्थभाष्य के अनुसार ऋजुसूत्र नय ऋजुसूत्र का व्यवहारनयवादी को प्रश्न १४१ का प्रश्न मिथ्या नहीं है । १४४ असत् में भावधर्म के असम्भव से निषेध के अनुपपत्ति की शंका "" १४५ वैज्ञानिक सम्बन्ध के उपराग से शशसींग में नास्तिव्यवहार-समाधान १४८ चार निक्षेपों का स्वीकार १४९ शब्दन - यथार्थाभिधान " " १० " शब्दय के निर्वचन में एक मत १५० साम्प्रतनय का लक्षण परिचय १५१ के लक्षण में अव्याप्ति की शंका १५२ शब्दनय लक्षण की अतिव्याप्ति का बारण "" १५३ सम्प्रदायानुसार साम्प्रतनय का लक्षण १५४ विशेषितर प्रत्युत्पन्न अर्थग्राही शब्दनय १५५ साम्प्रतनय में विशेषिततरग्राहिता की उपपत्ति पृष्ठ विषय १५६ ऋजुसूत्र की अपेक्षा से विशेषता व्यवहार से नामघटादि में घटत्व सिद्धि का निराकरण भावघट और नामघटादि में घटशब्द प्रयोग में अन्तर ऋजुसूत्र और साम्प्रतनय का विशेष अंतर "" १५७ १५८ १५८ " १५९ १५९ निरसन तृतीय भाग सकलस्व पर्यायावच्छिन्न सत्त्वविशिष्ट घट के अवक्तव्य को उपलक्षण मानने से समाधान अशक्य १६१ अवक्तव्यत्वाभाव आपत्ति का वारण १६० १६० सप्तभांगी का प्रथम भांग सप्तभंगी की प्ररूपणा द्वितीयभंग प्रमेयत्वावच्छेदेन अकुम्भत्वापत्ति का अशक्य १६२ एकपदमात्र जन्यत्व की विवक्षा में भी आपत्ति १६२ अवक्तव्यत्व का नये ढग से निर्वचन से समाधानप्रयास १६३ अप्रसिद्धि दोष से नये निर्वाचन वाला प्रयास निष्फल १६३ निरपेक्षवक्तव्यत्व के आठवे भांग की आपत्ति १६४ आपत्ति का प्रतिकार अशक्य " दीर्घ आशंका का समाधान तृतीय निर्वाचन के स्वीकार से सप्तभंगी का चतुर्थभग १६५ १६६ के पंचम भंग की निष्पत्ति १६७ " "" 39 93 छठे १६८ सातवे १६९ भाष्यकार के शब्दों में सप्तभगी का निर्देश "" "" " 33 " "" ""

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