Book Title: Nay Rahasya
Author(s): Yashovijay Gani
Publisher: Andheri Gujarati Jain Sangh

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Page 11
________________ विषय विषय ३९ अनुपयोगांश लेकर द्रव्यपद का औप- ५८ करणत्व-कर्मत्व एक साथ दुर्घट होने चारिक कथन की शंका का उत्तर ४० पर्यायाथिक के तीन भेद प्रस्थकदृष्टांत में शब्द-समभिरूढ-एवंभूत ,, सिद्धसेन सूरि के मत से चार भेद ५९ तीनों शब्दनयों का ज्ञानाद्वैतवाद में ____प्रवेश ४० पाँच नय का मतान्तर ज्ञानात्मक-अज्ञानात्मक उभयरूपता का ४१ नयविशुद्धिदर्शक प्रदेश दृष्टान्त समावेश अविरुद्ध ,, प्रदेश दृष्टान्त से नैगम-संग्रह और ६१ अर्थ-अभिधान-ज्ञान की तुल्यार्थता व्यवहार नय का निरूपण वसति के दृष्टान्त में सात नय ४२ 'घट-पटयो रूपम्' इस प्रयोग के अभाव की आपत्ति की शंका नैगम के विविध भेदों का अभिप्राय ४३ उक्त प्रयोगापत्ति में इष्टापत्ति का उत्तर ६२ उत्तरोत्तर ,, ,, में विशुद्धि .प्रदेशदृष्टान्त में ऋजसूत्र नय ६४ विशुद्धि तरतमता न होने की शंका ४४ पञ्चविधत्व का निर्दोष निर्वचन का उत्तर समग्रता को त्याग देने से उपचार के अशक्य विना अन्वय की शंका का उत्तर ४६ प्रदेश दृष्टान्त से शब्दनय का निरूपण ६७ 'कहाँ ?' ऐसी आकांक्षा के अल्पबहुत्व ४७ शब्दनय का अभिलापाकार से विशुद्धिवैचित्र्य-अन्य मत 'नोजीवः' शब्द प्रयोग का तात्पर्य ६९ वसतिदृष्टान्त में व्यवहार नय ४८ प्रदेशदृष्टान्त से समभिरूढ का निरूपण 'वसन् वसति' इस भेद पर आपत्ति ४९ अभेद में सप्तमीप्रयोग योग्यता की र अन्यत्रगत व्यक्ति में पाटलिपुत्रवासित्व आशंका . व्यवहार औपचारिक-उत्तर अनिश्चित बोध की आपत्ति ७० वसतिदृष्टान्त में संग्रहनय प्रदेशदृष्टान्त में एवम्भूत का निरूपण ७१ , , ,, ऋजुसूत्रनय ५० तादात्म्य-तदुत्पत्ति अतिरिक्त सम्बन्ध ७३ वर्तमान काल में ही देवदत्त का वास मान्य का अभाव ,, वसतिदृष्टान्त में शब्दादि तीन नय ५१ भेद होने पर सम्बन्ध की आशंका ७४ नैगमनय का प्रतिपादन आकाश और विन्ध्यादि का वास्तव ७५ लोकप्रसिद्ध अर्थ ग्राहक अध्यवसाय सम्बन्ध नहीं है-उत्तर ७६ दुर्नयत्व, प्रमाणत्व और संग्रह-व्यव५२ प्रस्थकदृष्टान्त में सातनयों का अभिप्राय हारान्तर प्रवेश की आपत्ति , नैगमनय का विविध अभिप्राय ७७ गौण-मुख्यभाव के स्वीकार से आपत्ति ५४ प्रस्थक दृष्टान्त में व्यवहारनय का वारण , , संग्रहनय .७८ अनुवृत्ति-व्यावृत्ति बुद्धि से भिन्न ५५ ,, में घटादिरूपता आपत्ति का वारण सामान्य-विशेष की आशंका , ,, अनुभयरूपता , ८० तुल्यातुल्य परिणाम ही सामान्य५७ , दृष्टान्त में ऋजुसूत्रनय विशेष-समाधान

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